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________________ ४० / जैन दर्शन और अनेकान्त अस्तित्व और नास्तित्व का नियम ____सामान्य धर्मों की दृष्टि से जगत् एक है। द्रव्यत्व एक सामान्य धर्म है। वह परमाणु में भी है और चेतन में भी है । उसकी दृष्टि से परमाणु और चेतन भिन्न हैं। चैतन्य विशेष धर्म है। वह चेतन में है, परमाणु में नहीं है। उसकी दृष्टि से चेतन परमाणु से भिन्न है। सामान्य धर्मों की दोनों में अस्तिता है। एक-दूसरे के विशेष धर्मों की एक दूसरे में नास्तिता है। सामान्य धर्मों की अस्तिता से द्रव्य बनते तो वे अनेक नहीं होते। विशेष धर्म की नास्तिता से द्रव्य बनते तो विश्व की व्यवस्था सर्वथा वियुक्त होती, उसमें कोई सामंजस्य या सह-अस्तित्व नहीं होता। अस्तिता और नास्तिता-इन दोनों के योग से द्रव्य बनते हैं, इसीलिए विश्व की व्यवस्था संयुक्त है और उसमें विशेष धर्मों या विरोधी धर्मों का सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व प्रत्येक द्रव्य में अस्ति-नास्ति प्रत्येक द्रव्य में दो प्रकार के पर्याय होते हैं—अस्तित्व-पर्याय और नास्तित्वपर्याय । अस्तित्व-पर्याय जैसे द्रव्य के घटक होते हैं, वैसे ही नास्तित्व-पर्याय भी उसके घटक होते हैं। दोनों मिलकर ही उसकी स्वतन्त्र सत्ता की स्थापना करते हैं। . स्वर्ण और जल-ये दो द्रव्य हैं। स्वर्ण के घटक परमाणु जल के घटक परमाणुओं से भिन्न हैं। स्वर्ण विशुद्ध है और जल दो वायुओं के मिश्रण से उत्पन्न है। अपने-अपने घटक परमाणु उनसे अस्ति-पर्याय के रूप में सम्बद्ध हैं। वैसे ही एक-दूसरे के घटक परमाणु उनसे नास्ति-पर्याय के रूप में सम्बद्ध हैं। दोनों पर्याय एक साथ सम्बद्ध रहकर ही द्रव्य को स्वरूप प्रदान करते हैं। केवल अस्ति-रूप में कोई द्रव्य नहीं है, केवल नास्ति-रूप में भी कोई द्रव्य नहीं है, जितने द्रव्य हैं सब अस्ति-नास्ति रूप में है। द्रव्य केवल अस्ति...... केवल नास्ति ..... अस्ति-नास्ति.......है वस्तु-सत्य की दृष्टि से तीसरा विकल्प ही सत्य है। केवल अस्ति और केवल १. द्विविधाः पर्यायिण पर्यायाछिन्त्यन्ते... सम्बद्धष्ठासम्बद्धष्छ।' -विशेषावश्यक भाष्य ४८१-८२ पत्ति, पृ० १७८-८० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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