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________________ द्वैतवाद / २३ उसके आधार पर देखें तो नीम का पत्ता हरा है, चिकना है। उसकी अपनी एक सुगंध है। वह हल्का है और मृदु है । हमारा जितना दर्शन है वह आनुवादिक और प्रात्ययिक परिणमन : ऊर्जा का उद्भव ___ पर्याय परिवर्तन के द्वारा वस्तुओं में बहुत सारी बातें घटित होती हैं। उनमें ऊर्जा की वृद्धि और हानि भी एक है। ऊर्जा परिणमन से ही प्रकट होती है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि द्रव्य (Mass) को शक्ति (Energy) में और शक्ति को द्रव्य में बदला जा सकता है । इस द्रव्यमान, द्रव्य-संहति और शक्ति के समीकरण के सिद्धान्त की व्याख्या परिणामी-नित्यवाद के द्वारा ही की जा सकती है। आइंस्टीन से पहले वैज्ञानिक जगत् में यह माना जाता था कि द्रव्य को शक्ति में और शक्ति को द्रव्य में नहीं बदला जा सकता। दोनों स्वतंत्र हैं। किन्तु आइंस्टीन के बाद यह सिद्धांत बदल गया। माना जाने लगा-द्रव्य और शक्ति दोनों भिन्न नहीं किन्तु एक ही वस्तु के रूपान्तरण हैं। एक पौण्ड कोयला लें और उसकी द्रव्य-संहति को शक्ति में बदलें तो दो अरब किलोवाट की विद्युतशक्ति प्राप्त हो सकती है। जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य में अनन्त शक्ति है। वह द्रव्य चाहे जीव हो या पुद्गल । काल की अनन्त धारा में वही द्रव्य अपना अस्तित्व रख सकता है जिसमें अनन्त शक्ति होती है। वह शक्ति परिणमन के द्वारा प्रकट होती रहती है। आज के वैज्ञानिक जगत् में जितना प्रयोग हो रहा है, उसका क्षेत्र पौद्गलिक जगत् है। पौद्गलिक वस्तु को उस स्थिति में लाया जा सकता है, जहां उसकी स्थूलता समाप्त हो जाए, उसका द्रव्य-मान या द्रव्य-संहति समाप्त हो जाए और उसे शक्ति के रूप में बदल दिया जाए। विश्व की व्याख्या दो नयों से ___जैन दर्शन ने द्रव्यार्थिक या पर्यायार्थिक–इन दो नयों से विश्व की व्याख्या की है। हम विश्व को अभेद की दृष्टि से देखते हैं तब हमारे सामने द्रव्य होता है। यह नीम, मकान, आदमी, पशु-ये द्रव्य ही हमारे सामने प्रस्तुत हैं। हम विश्व को जब भेद या विस्तार की दृष्टि से देखते हैं तब द्रव्य लुप्त हो जाता है। हमारे सामने होता है-पर्याय और पर्याय, परिणमन और परिणमन । आदमी कौन होता है? आदमी कोई द्रव्य नहीं है। आदमी है कहां ! आप सारी दुनिया में ढूंढे, आदमी नाम का Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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