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अनेकान्तावाद / १५१ आत्मा अमर है, यह सर्वथा सही नहीं है। एक परमाणु अमर है तो आत्मा भी अमर है । आत्मा अमर है तो एक परमाणु भी अमर है । कोई फर्क नहीं है। अगर परमाणु मरता है, शरीर मरता है तो आत्मा भी मरता है। प्रश्न होता है—शरीर क्या है? शरीर मूल द्रव्य नहीं है । शरीर एक पर्याय है। मूल द्रव्य है परमाणु । शरीर नहीं रहा, हम कहते हैं-अमुक व्यक्ति मर गया। वस्तुत: नष्ट कुछ भी नहीं हुआ। केवल रूपान्तरण हुआ। जो परमाणु शरीर के रूप में थे, वे शरीर के रूप में समाप्त हो गए
और दूसरे रूप में बदल गए। एक सार्वभौम सिद्धान्त है-जितने द्रव्य इस संसार में हैं, उतने ही हैं, उतने ही थे और उतने ही रहेंगे। एक भी परमाणु न अधिक होगा
और न न्यून होगा। कुछ भी परिवर्तन नहीं होगा। परिवर्तन का सिद्धान्त अपरिवर्तन के सिद्धान्त से जुड़ा हुआ है। समस्या यह है—जो केवल द्रव्यार्थिक नय को मानकर
चलते हैं, वे कभी परिवर्तन की व्याख्या नहीं कर सकते और जो केवल परिवर्तन को . मानकर चलते हैं, वे मूल स्रोत की व्याख्या नहीं कर सकते, मूल अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सकते। समन्वय की मौलिक दृष्टियां
बौद्ध दर्शन पर्यायवादी दर्शन है । जब उसके सामने आत्मा आदि के प्रश्न आए तो उन्हें अव्याकृत कहकर टाल दिया गया। क्योंकि एकान्तवाद के द्वारा उनकी सम्यक् व्याख्या हो नहीं सकती। जैनदर्शन ने इन दोनों दृष्टियों-द्रव्यार्थिक दृष्टि
और पर्यायार्थिक दृष्टि का समन्वय किया। जैनदर्शन ने कहा-मूल तत्व भी है और पर्याय भी है। इसलिए उसने द्रव्य की व्याख्या भी की और पर्याय की व्याख्या भी की। उसने शाश्वत और अशाश्वत—दोनों का समन्वय साधा। आज के विचारक
और विद्वान कहते हैं—जैनदर्शन मौलिक दर्शन नहीं है । यह दूसरे दर्शनों का समुच्चय है। दूसरे दर्शनों के विचारों का एक पुलिन्दा है। यह धारणा क्यों बनी? इसका आधार बना-जैन आचार्यों की समन्वय दृष्टि । जैन आचार्यों ने समन्वय किया नयों के आधार पर। यह उनका समन्वयपरक दृष्टिकोण था। समन्वय का दृष्टिकोण जिन दृष्टियों से किया, वे उनकी अपनी मौलिक थीं। किन्तु जब समन्वय साधा तो दूसरों को लगा-यह नित्यवाद सांख्यदर्शन का है। सांख्य, आत्मा को कूटस्थ नित्य मानता है। यह नित्यवाद वेदान्त का सिद्धान्त है। अनित्यवाद बौद्धों का सिद्धान्त है। जैनों ने नित्यवाद सांख्य और वेदान्त से ले लिया और अनित्यवाद-पर्यायवाद बौद्धों से ले लिया। यह लेने का प्रश्न नहीं था। यह प्रश्न था समन्वय का।
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