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________________ नियमवाद / १३१ संदर्भ भाव का जीवन का एक संदर्भ है—भाव। एक दिन में मनुष्य को अनेक भावों का सामना करना होता है । क्रोध, अहंकार, लोभ आदि-आदि मनोभाव बदलते रहते हैं । एक आदमी ने कहा—मुझे दिन में गुस्सा कम आता है और रात को ज्यादा आता है। किसी को अमुक व्यक्ति पर गुस्सा ज्यादा आता है, किसी को अमुक स्थिति पर गुस्सा ज्यादा आता है । ऐसा क्यों होता है ? किसी व्यक्ति को अमुक स्थान में जाने पर गुस्सा आ जाता है। इसका क्या कारण है ? इस प्रश्न के संदर्भ में नियमों के समवाय का अनुशीलन आवश्यक है। स्थानांग सूत्र में चार कारण बतलाए गए हैं। उनमें पहला कारण है-क्षेत्र । एक क्षेत्र के प्रकंपन ऐसे होते है जहां जाते ही आदमी के भाव बिगड़ जाते हैं और एक क्षेत्र के प्रकंपन ऐसे होते हैं, जहां जाते ही आदमी के भाव अच्छे बन जाते हैं, गुस्से का भाव शांत हो जाता हैं । नेपाल में भवन बनाते समय मिट्टी का परीक्षण किया जाता है। वहां यह एक शास्त्र-विद्या चल पड़ी है। नेपाल में इस प्रकार के ज्योतिर्विज्ञानी हैं, जो मिट्टी का परीक्षण करते हैं । परीक्षण के बाद बतलाते हैं यहां की मिट्टी के प्रकम्पन किस प्रकार के हैं। वे आपके लिए लाभप्रद होंगे या हानिकारक ? क्षेत्र के आधार पर यह पूरा विज्ञान विकसित हुआ मूड क्यों बिगड़ता है? ___ मूड बिगड़ने का एक ही कारण नहीं है। उसका एक नियम है—काल । प्रात:काल मूड कम बिगड़ेगा और गर्मी का समय है तो मूड जल्दी बिगड़ जाएगा। व्यक्ति का अलग-अलग समय पर अलग-अलग मूड होता है। इस आधार पर जिस सिद्धान्त का विकास हुआ है, उसे स्वर-विज्ञान में, स्वरोदयशास्त्र में, बहुत स्थान दिया गया है। किस समय किस प्रकार का भाव भीतर चलता है—इस आधार पर सारे कार्यों का निर्णय करना चाहिए । अनेक आदमी जानते हैं कि अभी लाभ का दुघड़िया है, शुभ का दुघड़िया है, अमृत का दुघड़िया है। ये सारे व्यक्ति पर प्रभाव डालते हैं। एक समय होता है जब व्यक्ति का भाव बहुत शान्त रहता है, प्रसन्न रहता है, मूड बहुत अच्छा रहता है । दूसरा समय आया, उसी व्यक्ति का उसी दिन में भाव बदल जाता है, मूड बिगड़ जाता है। वह बिल्कुल बदला हुआ-सा लगता है। यह वही व्यक्ति है, ऐसा विश्वास नहीं होता। अफसर के पास एक व्यक्ति किसी कार्य से जाए और उसका काम बन जाए तो वह कहेगा-आज मुहूर्त शुभ था, अफसर का मूड बहुत अच्छा था इसलिए काम बन गया। दूसरे समय जाए और काम न बन पाए Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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