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१३२ / जैन दर्शन और अनेकान्त तो कहेगा—मैंने तो ऐसा सोचा ही नहीं था कि यह इतना निकम्मा आदमी है इसका इतना खराब मूड है। इसके साथ बात करने में भी धर्म नहीं है । एक व्यक्ति ऐसा कैसे हुआ? इसकी व्याख्या नियमों के बिना नहीं की जा सकती। एक ही व्यक्ति कितने भावों में बदल जाता है, कितने उसके पर्याय बदल जाते हैं, इसे नियमवाद के आधार पर ही समझा जा सकता है। आधार मुहूर्त का ____ जीवन का एक संदर्भ है सम्बन्ध । अमुक समय में अमुक व्यक्ति के साथ सम्बन्ध हुआ है तो बहुत अच्छा निभेगा और अमुक समय में हो गया तो बहुत जल्दी ही टूट जाने वाला है, दुर्भाग्यपूर्ण है । जितने सामाजिक सम्बन्ध हैं, उनके लिए काल एक नियम बनता है। न केवल सामाजिक सम्बन्धों के लिए किन्तु गुरु और शिष्य के सम्बन्ध में भी यही तथ्य है । अमुक समय में गुरु और शिष्य का सम्बन्ध जुड़ा है तो बहुत विकसित होगा और अमुक समय में जुड़ा है तो वह ज्यादा निभने वाला नहीं है, टूटने वाला है। इस आधार पर दीक्षा के समय मुहूर्त का चिंतन किया जाता है। किस समय में दीक्षित होना चाहिए-इस संदर्भ में बहुत सारे निर्देश और सिद्धान्त विकसित किए गए। नियमन का सिद्धान्त है नियमवाद .
जीवन के संदर्भ में नियमवाद का यह संक्षिप्त अनुशीलन है। नियमों का जैन-साहित्य में बहुत विकास हुआ है। उसमें बहुत सारे नियम ग्रंधित हैं। अगर सारे नियमों का संकलन किया जाए तो पूरा एक नियमशास्त्र बन जाए, नियमों का एक महाग्रंथ बन जाए, उसके आधार पर नियमों की समग्र व्याख्या की जा सकती है। जैनदर्शन नियंता को नहीं मानता, ईश्वर को नहीं मानता । वह नियमन के सिद्धान्त को नियमवाद के संदर्भ में प्रस्तुत करता है । वह मानता है हर व्यक्ति और पदार्थ के अपने-अपने नियम हैं और वे नियम अपना काम करते हैं। ईश्वरवादी यह कहकर छुट्टी पा सकता है कि भगवान की ऐसी मर्जी थी, ऐसी इच्छा थी, अत: ऐसा हो गया पर एक अनीश्वरवादी यह कहकर छुट्टी नहीं पा सकता । उसके सामने बड़ा मार्ग है। ईश्वरवाद का मार्ग बहुत सरल मार्ग है। ईश्वरवाद का अस्वीकार बड़ा जटिल कार्य है। इससे व्यक्ति के सामने स्वयं निर्णय करने का प्रश्न आता है, नियमों की खोज का प्रश्न आता है। इस प्रश्न के संदर्भ में जैनदर्शन ने नियमों की खोज की है, वह खोज बहुत उपयोगी है, उसका ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।
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