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१३० / जैन दर्शन और अनेकान्त
बातें जान लेते हैं और उसके आधार पर फलित बता देते हैं । कुण्डली देखते हैं और भविष्यवाणी कर देते हैं। इस पाखण्डवाद ने ज्योतिर्विज्ञान को धूमिल बना दिया, संदेहास्पद बना दिया । वास्तव में ज्योतिर्विज्ञान एक बहुत बड़ा नियम है। कब सूर्य, चन्द्र आदि -आदि ग्रहों की गति और उनके विकिरण किस प्रकार के होते हैं और कब व्यक्ति उनसे प्रभावित होता है—यह सारा ज्योतिर्विज्ञान से जाना जा सकता है। इन नियमों का विस्तार किया गया ज्योतिर्विज्ञान में। किस महीने में, किस ऋतु में और किस राशि में किस प्रकार का विकिरण होता है और वह व्यक्ति के शरीर को किस प्रकार प्रभावित करता है । यदि हार्ट को पुष्ट करना है तो किस राशि में उसको पुष्ट किया जा सकता है ? यदि मस्तिष्क को पुष्ट करना है तो किस राशि में उसको पुष्ट किया जा सकता है। प्रत्येक अवयव के साथ राशि और ऋतु का चक्र जुड़ा है। ज्ञान को विकसित करना है तो कब करना चाहिए। जैन आगमों में अध्ययन के विशेष काल का निर्देश दिया गया है। प्रश्न पूछा गया - स्वाध्याय कब प्रारम्भ करें ? उत्तर दिया गया - पुष्य नक्षत्र में या अमुक अमुक नक्षत्र में अध्ययन शुरू करें । अमुक दिशा में बैठकर अध्ययन शुरू करें। यह दिशा का निर्देश, काल का निर्देश बहुत सार्थक है । उस समय किया गया स्वाध्याय का प्रारम्भ बहुत फलदायी होता है और बहुत ग्राह्य बनता है ।
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प्रभाव सौरमंडल के विकिरणों का
यह काल का प्रभाव है। उसके नियम गरीबी और अमीरी के साथ भी जुडे हुए हैं। अमुक प्रकार का सौर मंडल का विकिरण अमुक प्रकार के व्यक्ति को प्रभावित करता है तो गरीबी की स्थिति बन जाती है। बहुत लोग कहते हैं— हमने बहुत प्रयत्न किया, व्यावसायिक बुद्धि और पुरुषार्थ का भी बहुत उपयोग किया, बहुत चेष्टाएं कीं, प्रयत्न किए, अनेक लोगों से सम्बन्ध स्थापित किए किन्तु अब तक सफलता नहीं मिली, गरीबी बनी की बनी रही। समाज में ऐसी घटनाएं बहुत होती हैं और इनका कारण हो सकता है— कोई काल विपरीत चल रहा है, सौर मंडल के विकिरण विपरीत काम कर रहे हैं । जब कोई अवसर आता है, वे व्यक्ति के कार्य की निष्पत्ति में बाधक बन जाते हैं। एक नियम है पुरुषार्थ । श्रमहीनता, श्रमविमुखता गरीबी को बढ़ाती है और श्रम की प्रचुरता गरीबी को कम करती है, गरीबी को मिटाती है। एक नियम है— कर्म । जिस व्यक्ति के असातवेदनीय कर्म का उदय अति तीव्र होता है, उसकी गरीबी को मिटाना मुश्किल बन जाता है। इस प्रकार अनेक नियमों को जानकर ही इस प्रश्न की समीक्षा की जा सकती है ।
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