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ईश्वरवादः कर्मवाद / ११९ से कहा—'तुम एक दो महीने के भीतर राजा बन जाओगे!' छोटे भाई से कहा'तुम्हारा बहुत बुरा योग है। तुम दुर्भाग्य से पीड़ित रहोगे, भिखारी बन जाओगे।' दो महीने बीते । राजा की आकस्मिक मृत्यु हो गई। मृत राजा के कोई पुत्र नहीं था। महामंत्री ने नये राजा की नियुक्ति के लिए प्राचीन परम्परा का प्रयोग किया। एक हथिनी को सज्जित कर उसकी सूंड में वरमाला डालकर छोड़ दिया गया। परम्परा के अनुसार हथिनी जिसके गले में माला डालती है, वही राजा घोषित होता है। हथिनी ने कुछ ही घंटों बाद बाजार में खड़े छोटे भाई के गले में माला डाल दी। छोटा भाई राजा बन गया और बड़ा भाई भिखारी बन गया। राजा ने ज्योतिषी से कहा-'आपने भविष्य गलत बतलाया, उल्टा बतलाया। भिखारी बनने वाला राजा बन गया और राजा बनने वाला भिखारी बन गया।' ज्योतिषी महाशय ने गम्भीर स्वर में कहा-'राजन ! मेरा भविष्य गलत नहीं था। आप बताइए—आपने भविष्य जानने के बाद अपना समय कैसे बिताया'? राजा बोला—'मेरा बड़ा भाई इतने दिन उन्मत्त बना रहा। उसने सोचा—मैं राजा बनूंगा, अब किस बात की चिन्ता है, विलासिता, फिजूलखर्ची आदि में फंस गया, निरन्तर बुरे कामों में लगा रहा। मैंने सोचा-मुझे भिखारी नहीं बनना है । ज्योतिषी के कथन को गलत सिद्ध करना है। मैं निरन्तर अच्छे कार्यों, अच्छे विचारों में डूबा रहा। मैंने इन दो महीनों में एक भी बुरा काम नहीं किया। मेरा दृढ़संकल्प था—मुझे भिखारी नहीं बनना है।'
ज्योतिषी ने कहा-'राजन ! मेरी भविष्यवाणी सही थी। किन्तु आप इसका अपवाद भी जानते हैं। बुरा काम, अच्छे भविष्य को भी उलट देता है और अच्छा काम बुरे भविष्य को भी अच्छा बना देता है । यह आपके सामने प्रत्यक्ष है।' महावीर : पुरुषार्थ के सशक्त प्रवक्ता ___ यह संक्रमण का सिद्धांत है। आदमी राजा होते-होते भिखारी बन सकता है
और भिखारी बनते-बनते राजा बन जाता है। कर्म के विषय में यह अपवाद है और यह पुरुषार्थ से सम्भव बना है। जैनदर्शन ने निरन्तर पुरुषार्थ पर बल दिया। भगवान महावीर ने कहा-पुरुष ! तू पराक्रम कर ! आचारांग सूत्र में पुरुषार्थ का यह स्वर बार-बार उच्चरित हुआ है-पराक्रम करो, वीर बनो, अपने वीर्य को छिपाओ मत । निरन्तर लड़ते रहो । महावीर ने युद्ध का बड़ा उपदेश दिया। उन्होंने कहा—तुम क्यों बैठे हो, लड़ो। लड़ने का समय बार-बार नहीं आता। युद्ध का अवसर कब-कब आता है। इसका मौका किसी भाग्यशाली को ही मिलता है। ___ यह युद्ध की प्रेरणा, परम पुरुषार्थ की प्रेरणा, भाग्यवाद को चकनाचूर कर देने
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