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कार्य-कारणवाद / १११ ध्यान आर्तध्यान बन जाए, रौद्र ध्यान बन जाए। इसलिए तत्त्वज्ञान, तत्त्व की रुचि और चारित्र–इन तीनों का योग आवश्यक है। जैनदर्शन का यह सूत्र—'सम्यग् दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:' अत्यन्त प्रौढ़ विचार और प्रौढ़ दार्शनिक चिंतन के पश्चात् निर्मित हुआ है। यह समग्र योग और समन्वय बहुत काम का है। इस आधार पर यदि दर्शन को समझा जाए, जैन साधना पद्धति को समझा जाए तो उसका निष्कर्ष होगा-दर्शन और साधना—इन दोनों का योग आवश्यक है। यदि यह योग जीवन में घटित होता है तो दृष्टि स्पष्ट बनेगी और साधना के क्षेत्र में नये-नये उन्मेष प्रकट होते चले जाएंगे।
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