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१०८ / जैन दर्शन और अनेकान्त प्रश्न भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैनदर्शन ने इन पर बहुत सूक्ष्मता से विचार किया है। इनमें ईश्वर कर्तृत्व स्वीकार करने की कोई अपेक्षा नहीं हैं। सूक्ष्म से स्थूल बनने की प्रक्रिया जीव और पुद्गल के संयोग से स्वाभाविक रूप से स्वत: चलती है, चल रही है।
सारा दृश्य जगत जीव-शरीर का जगत् है। एक कपड़ा वनस्पतिकायिक जीव का शरीर है। एक पत्थर पृथ्वीकायिक जीव का शरीर है। पानी, जो प्यास बुझाता है, अप्कायिक जीव का शरीर है। आग अग्निकायिक जीव का शरीर है। हवा चल रही है, स्पर्श के द्वारा उसका बोध होता है, वह वायुकायिक जीवों का शरीर है। मनुष्य त्रसकायिक जीवों का शरीर है । इस जगत् का प्रत्येक दृश्य पदार्थ जीव का शरीर है।
दृश्य जगत् के दो विकल्प बनते हैं—जीवित शरीर और जीवमुक्त शरीर । जितना दृश्य जगत् है, जो दिखाई दे रहा है, वह जीवयुक्त या जीवमुक्त शरीर है। प्रत्येक व्यक्ति जीवित शरीर को देखता है अथवा मृत शरीर को । दृश्य जगत्. के ये दो ही विकल्प हैं । उसका तीसरा कोई विकल्प नहीं है। जैनदर्शन के दो प्रसिद्ध पारिभाषिक शब्द हैं-सचित्त और अचित । जिसमें जीव विद्यमान हो, वह सचित्त शरीर है। जिसका जीव चला गया, जो मृत्त हो गया, वह अचित्त शरीर वाला होता
___यह नियम अत्यन्त व्यापक है कि जो दृश्य जगत् है, स्थूल जगत् है, वह सारा का सारा जीव का शरीर है । जीव के द्वारा उसका स्थूलीकरण हुआ है। सिद्धान्त पुद्गल वर्गणा का
___जीव पुद्गलों की वर्गणाओं को ग्रहण करता हरता है। एक व्यक्ति बोलता है किन्तु वह तब तक नहीं बोल पाता जब तक वह भाषा-वर्गणा के पुद्गल को ग्रहण नहीं कर लेता। वर्गणा का सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । जैनदर्शन में पुद्गलों तत्त्व को अनेक वर्गणाओं में बांटा गया। उनमें मुख्य वर्गणाएं हैं—शरीर-वर्गणा, भाषावर्गणा, मनो-वर्गणा, कर्म-वर्गणा आदि-आदि । यदि वर्गणाओं का विस्तार किया जाए तो उनकी एक लम्बी तालिका प्रस्तुत हो सकती है । इस आकाश मण्डल में भाषा-वर्गणा के पुद्गल भी हैं, चिन्तन की वर्गणा के पुद्गल भी हैं, मनो-वर्गणा के पुद्गल भी हैं, श्वासोच्छ्वास वर्गणा के पुद्गल भी हैं, किन्तु बोलने में वे ही पुद्गल काम आएंगे, जो भाषा-वर्गणा के हैं। श्वासोच्छ्वास के पुद्गल बोलने के काम नहीं आएंगे। यदि आदमी को श्वास लेना है तो श्वासोच्छवास के पुद्गल काम आएंगे, भाषा-वर्गणा
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