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कार्य-कारणवाद / १०७ के पीछे कारण होना ही चाहिए, यह सिद्धान्त जैनदर्शन में सम्मत नहीं है। जहां केवल सादि परिणमन होता है, वहां यह सिद्धान्त लागू हो सकता है। अन्यत्र इसकी कोई अपेक्षा नहीं है। जगत् : दार्शनिक जगत् का अहं प्रश्न ____ दार्शनिक जगत का एक अहं प्रश्न है—यह जगत क्या है ? जिस जगत में हम जी रहे हैं, वह क्या है ? इसका बहुत सीधा उत्तर है-अनादि और सादि परिणमन का योग, इसका नाम है जगत । कुछ अनादि परिणमन हैं, वे सूक्ष्म हैं, मूल तत्त्व है। जो मूल तत्त्व हैं, सूक्ष्म हैं वे अदृश्य रूप में काम आ रहे हैं । जीव सूक्ष्म तत्त्व है, परमाणु सूक्ष्म तत्त्व है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय—ये अमूर्त हैं। इनका कोई मूर्तिकरण नहीं है। पुद्गल मूर्त हैं। किन्तु सूक्ष्म पुद्गल भी अनन्तान्त होते हैं। .
जगत् को दो भागों में बांटा गया-दृश्य जगत् और अदृश्य जगत् । चार तत्वों का जगत् अदृश्य जगत् है, काल भी अदृश्य है। केवल पुद्गल का जगत् दृश्य बनता है। किन्तु सभी पुद्गल हमारे लिए दृश्य नहीं बनते। दो प्रकार की परिणतियां होती है-एक सूक्ष्म परिणति और दूसरी स्थूल परिणति । जिन पुद्गलों की परिणति स्थूल बन जाती है, उन्हें आंख के द्वारा देखा जा सकता है। जिनकी परिणति सूक्ष्म रहती है, उन्हें आंख के द्वारा नहीं देखा जा सकता । वे दृश्य होते हुए भी अदृश्य बने रहते हैं, चक्षु का विषय नहीं बनते । जैसे-जैसे शक्ति का विकास होता है, अदृश्य दृश्य बनते चले जाते हैं। चर्मचक्षुओं से जिन वस्तुओं को नहीं देखा जा सकता, उन्हें वर्तमान में माइक्रस्कोप के द्वारा देखा जा सकता है, सूक्ष्म यान्त्रिक उपकरणों के द्वारा देखा सकता है। हमारी इन्द्रियों की पटुता यंत्र के माध्यम से और अधिक बढ़ जाती है। एक अतिशयज्ञानी, अवधिज्ञानी और मन:पर्यवज्ञानी सूक्ष्म पुद्गल को देख सकता है। अमूर्त पदार्थ को सर्वज्ञ के सिवाय कोई नहीं देख सकता। अवधि, मन:पर्यव, प्रातिभ, जातिस्मरण आदि से सम्पन्न व्यक्ति सूक्ष्म पुद्गलों को देख सकते हैं । जो पुद्गल चर्मचक्षु के विषय नहीं बनते, वे अतीन्द्रिय ज्ञान का विषय बन जाते हैं। दृश्य जगत् क्या है?
सारा दृश्य जगत् दो भागों में बंट जाता है-चक्षु से देखा जाने वाला दृश्य जगत और अतिशय ज्ञान के द्वारा देखा जाने वाला दृश्य जगत । अदृश्य कैसे बनता है? सूक्ष्म की स्थूल परिणति कैसे होती है? सूक्ष्म को स्थूल कौन करता है? ये
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