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कार्य-कारणवाद / १०५
परिणमन हैं, वे सब निरपेक्ष सत्य हैं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्किाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल -- ये सब निरपेक्ष सत्य हैं । लोक और अलोक भी निरपेक्ष सत्य हैं । इनके अतिरिक्त जितने भी सादि परिणमन हैं, वे सब सापेक्ष सत्य हैं । सापेक्ष सत्य में ही कार्य-कारण को खोजा जा सकता है। कारण के तीन प्रकार
तर्कशास्त्र में तीन प्रकार के कारण माने गए हैं- उपादान कारण, निमित्त कारण और निवर्तक कारण, सहयोगी या सहकारी कारण । घड़ा बनाया जाता है उसका उपादान कारण है मिट्टी । उसका निवर्तक कारण है कुम्हार । उसके बनाने में जिन उपकरणों का प्रयोग होता है, वे हैं निमित्त कारण। जितने सादि परिणमन हैं उनमें इन तीनों कारणों को खोजा जा सकता है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि तीनों कारण सर्वत्र उपलब्ध हों । उपादान कारण का होना अत्यन्त अनिवार्य है । सादि परिणमन और निमित्त भी अनिवार्य है। किन्तु निवर्तक सर्वत्र हो, यह आवश्यक नहीं है । घड़े और मकान के निर्माण में कर्त्ता की जरूरत होती है। आकाश में बादल बनते हैं । उनका कोई कर्ता नहीं है । यह स्वाभाविक परिणमन है। जहां स्वाभाविक परिणमन होता है, वहां कर्त्ता की जरूरत नहीं होती, दो कारण मिलकर कार्य की निष्पत्ति कर देते हैं । जो कार्य स्वाभाविक नहीं होते हैं, कृत होते हैं, उनमें तीनों कारण उपलब्ध होते हैं ।
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सृष्टि के निर्माण का प्रश्न
कार्य और कारण की श्रृंखला पर अनेकान्त दृष्टि से विचार आवश्यक है । अनेक दार्शनिक सर्वत्र कार्य-कारण की अनिवार्यता स्वीकार करते हैं । सृष्टि का प्रारम्भ ईश्वर से होता है। ईश्वर कर्त्ता है और सृष्टि उसका कार्य है। इससे उपादान का प्रश्न और अधिक उलझ जाता है । ईश्वरवाद और कार्य-कारणवाद का भी परस्पर एक सम्बन्ध रहा है। कार्य-कारणवाद के आधार पर ईश्वर को स्वीकार किया जाता है । एक तर्क प्रस्तुत होता है- 'अगर सृष्टि कार्य है तो उसका कर्ता भी होना चाहिए । घड़ा एक कार्य है तो उसका भी कोई कर्त्ता है और उसका जो कर्ता है, वही ईश्वर । यह तर्क भी बहुत सुलझा हुआ नहीं। इस सन्दर्भ में अनेक प्रश्न उभर जाते हैं। ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया है। उसने संकल्प से किया या उपादान से ? अगर उपादान मांजूद थे और सृष्टि का निर्माण किया तो परमाणुओं के संघात से किया या ऐसे संकल्प से ही कर दिया ? ईश्वर ने संकल्प किया और सृष्टि बन गई ।
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