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जेम टीकाकारे पोतानुं नाम लखवानो विचार न कर्यो तेवी ज रीते व्याख्यानुं नाम पण आपवानुं नहीं होय जेथी आ टीकामां कोई पण जग्याए व्याख्यानुं नाम स्पष्ट के व्यङ्ग्य पणे पण जीवा मळतुं नथी । माटे ज आ टीकाने कोई न्यायागमानुसारिणी कहे छे कोई कोई नयचक्र वाल[द ? ] कहे छे । परन्तु आ व्याख्या न्यायने अने आगमने अनुसरीने रचेली होवाथी न्यायागमानुसारिणीव्याख्या आ नामनो अधिक संभव छे । साचुं नाम तो द्वादशारनयचक्रव्याख्या, अथवा नयचक्रव्याख्या आवुं होवुं जोइए !
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आ व्याख्या अन्वयमुखथी ज करवामां आवी छे । एटले मूलना शब्दोनी व्युत्पत्ति अने पर्याय आदि प्रदर्शनद्वारा तेना भावार्थने स्पष्ट करे छे । मूलना सम्बन्धने मूकीने कोई पण अर्थ करती नथी । अने मूलने अनपेक्षित बीना पण कहेवामां आवी नथी, आवश्यक वातोने मूकी दीधी पण नथी, एटले नातिविस्तृत पर्याप्त व्याख्या छे । तेथी ज मूलनुं अनुमान करवामां घणी महेनत पडती नथी । आम होवा छतां आ व्याख्यामां दार्शनिक विषय एटलो गहनपणे भरेलो छे के जे सामान्यदार्शनिकने तेनो अभिप्राय हस्तगत थई के नहीं । पातञ्जलभाष्यआदि व्याकरणसम्बन्धी विषयो पण घणी सारी रीते स्फुटीकरण करवामां आव्या छे । आथी टीकाकारनी सकलदर्शननी प्रतिभा सूर्यकान्तमणिना प्रकाशनी जेम झळके छे । मूल अने व्याख्यानुं स्पष्टपणे तुलनात्मक अध्ययन करिये तो स्पष्ट आभास थाय छें के मूलकारनी जेम टीकाकार पण अनुपम वादिवर्य छे । व्याकरण अने दर्शनशास्त्रमां पारङ्गत छे । जैनदर्शनमां तो कहेवुं शुं ? तेमां तो आचार्य ज हता, दिव्यज्ञानी हता, स्याद्वादना अलौकिक समर्थक हता, सकल दर्शनोने स्याद्वादमां उतारवामां विख्यात निष्णात हता ।
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आ ग्रन्थमा साथै 'विषमपदविवेचन' नामक टिप्पण पण अपायेलुं छे । आ ग्रन्थ सामान्य अभ्यासिओ माटे घणो ज गहन छे । एमां समायेलां रहस्यो समजवा अति कठिन छे । आ माटे आ ग्रन्थना पोतानी वृद्धावस्था होवा छतां सारी जहमत उठावीने संपादन करनार अमारा परमगुरुदेवश्रीए टिप्पण द्वारा मूळ अने टीकानां तेमने लागेलां कठिन अने गहन स्थळोना विषयोनो विशद स्फोर कर्यो छे । अमारा प्रातःस्मरणीय षड्दर्शनवेत्ता पूज्यपाद परमगुरुदेव अनेक ग्रन्थोना निर्माता अने काव्यकार होवा उपरांत अनेक विषयोना तलस्पर्शी अभ्यासी छे । आजे पण आ महान् सद्गुणी महापुरुषनी सतत अभ्यासवृत्ति अने विद्याव्यासंग युत्रानोने पण लज्जित करे एवो छे । आवी वृद्धावस्थामां पण नित्य नवनवी अनेक भाषामयी रचना द्वारा तेओश्री ख- परना उपकार साथै श्रुतज्ञाननी महती उपासना करी रह्या छे । अने अनेक शिष्योने श्रुतज्ञाननी आराधना करावी रह्या छे । जो तेओश्रीए आ ग्रन्थनुं संपादन कार्य हाथ धन होत तो मारा जेवाने आ ग्रन्थनुं जे यत्किंचित् ज्ञानसंपादन थयुं ते थयुं न होत !
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आ ग्रन्थना रचयिता वादिपंचाननमल्लवादिसूरि महाराजा तेमज आ ग्रंथना टीकाकार तथा टिप्पणकार पूज्यो सारा मानव समाज उपर उपकार कर्यो छे ।
आचार्यप्रवर श्री मल्लवादिक्षमाश्रमण अने द्वादशारनयचकसाथ संबंध धरावता अनेकानेक मुद्दाओनुं मने मारा अभ्यासद्वारा प्राप्त सामग्रीना आधारे अहीं में निरूपण कर्यु छे ।
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