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आ रीते लखवा विचारवानो मारो आ प्रथम प्रयत्न छ । आमा रहेली अपूर्णताओनो मने ख्याल छ । इतिहासना एक नम्र अभ्यासी तरीके में अहीं रजु करेली सामग्री विद्वानोने यत्किंचित् पण सत्य निर्णय माटे उपयोगी थशे तो हुं मारा प्रयत्नने फलेग्रही मानीश । तटस्थदृष्टिए विचारवानी तज्ज्ञोने मारी विनंती छे । आमां रहेली स्खलनाओनुं प्रमार्जन करी आ अंगे विशेष प्रकाश पाडवानी नम्र भलामण छ । : विद्वान वाचको दर्शनशास्त्रना आ महान्ग्रन्थरत्नना अभ्यास द्वारा अनेकान्तदृष्टिनो पूर्ण विकाश साधी संपादक परमर्षिनो परिश्रम सफल करे एवी अभिलाषा साथे आ प्रस्तावनाने अहीं ज पूर्ण करूं छु।
दादर मुंबई-२८ आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरजी
जैन ज्ञानमंदिर : ता० १३-३-६०
आराध्यपाद परमगुरुदेव आचार्यदेव श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराजान्तेवासी पंन्यासविक्रम विजय गणी
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