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इतिहासरसिको आ आर्यशिवशर्मसूरिने पांचमी सदीना माने छे पण तेमनी पासे तेवो कोई पुरावो नथी । ज्यारे पू० उमाखाति म० ए वायु अने अग्निने त्रस कह्या छे त्यारे शिवशर्मसूरि एने सूक्ष्मत्रस एम विशेषण लगाडी ने कहे छे । आथी ऊपर करेला विचार मुजब उमास्वाति म० थी पश्चात्कालीन आ आचार्य छ एमां शंका रहेती नथी । आ कर्मप्रकृतिनी एकगाथा आ टीकाकारे उद्धृत करी छे एटले टीकाकार वि० सं० ५३० पछीना ज खिद्ध थाय छ ।
___ विशेषआवश्यकभाष्यनी बे गाथाओ (१४१-१४२) बृहत्कल्पभाष्यनी साथे मळती छे । मूलकारे विशेषआवश्यकभाष्यनुं एक पण उद्धरण लीधुं नयी पण बृहत्कल्पभाष्यनुं तो' लीधुं छे । आयी पण विशेषआवश्यकभाष्य करतां बृहत्कल्पभाष्य प्राचीन छ । छतां टीकाकारे बृहत्कल्पभाष्यमांथी ए गाथाओ लीधी नथी पण विशेषावश्यकभाष्यमांथी ज लीधी छे । बृहत्कल्पमा पहेली बे गाथा छे ज्यारे विशेषावश्यकभाष्यमां ए त्रणे गाथाओ साथे ज मळे छ । आथी अमारो ए निश्चय छे के टीकाकारे विशेषावश्यक. भाष्यमांथी ज ए गाथाओ लीधी छे ।।
'चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषात् श्लेष्मणोभयम्' आ उद्धरण अष्टाङ्गहृदयथी अथवा चरकथी लीधेनुं छे। अष्टाङ्गहृदयना कर्ता ई० स० पांचवी सदीना मनाय छे एटले टीकाकारनो समय विक्रमनी पांचवी सदी पछीनो सिद्ध थाय छे । नयचक्रटीकाकारे एवी रीते स्वनिरूपणमां संवादकतरीके संख्याबंध उद्धरणो आप्यां छ । 'तेमांना केटलांक उद्धरणो एमनाथी पाछळना ग्रन्थकारोए पण उद्धृत करेला जोवा मळे छे । अने केटलाक उद्धरणो कया ग्रन्थना छे एनो पत्तो पण लागतो नथी । एवी ज रीते मूल अने टीकामां आवतां केटलाक अवतरणोनो मूल आधार सांपडतो नथी। तेथीज अमे एनां स्थान लख्यां नथी जेवां के–'कः कण्टकानां प्रकरोति' वगेरे । प्रेमयकमलमार्तण्ड, बृहत्कल्प आदिमां प्राप्त थाय छे पण ए बधा उद्धृत छे ।।
अमने मळेला उद्धरणो जोतां मूलकारथी टीकाकारने पाछळना सिद्ध करनार सहुथी प्रबल प्रमाण विशेषावश्यकभाष्य ज छे अने प्रथमअरमां टीकाकारे 'विद्वन्मन्याद्यतन बौद्धपरिक्षि( कु ? )तं सामान्यम्' आ वाक्य आवे छे । आजकालना बौद्धोए अर्थान्तरापोहलक्षण सामान्य कल्प्यु छ । आथी आवो अर्थ तो न ज थाय के टीकाकारना समये ज कल्प्यु छे; एमर्नु ए वाक्य मूलकारनी सामे रहेला बौद्धो माटे छे । मने तो लागे छे के अद्यतन शब्द नवीन अर्थमा लाक्षणिक छ । गमे तेम होय पण आ वाक्यथी दिङ्नागने अद्यतनबौद्ध कहे छ । केमके ए वसुबन्धुथी केटलाक विचारोमां जुदा पडे छे माटे नवीन छ । अद्यतनबौद्धपदयी धर्मकीर्तिने समजी न शकाय केमके टीकाकार पण धर्मकीर्तिथी पूर्वना छे पण पछीना के समसामयिक नथी । पूर्वमा अन्यापोहकृत्श्रुतिः' आवो ज शब्दार्थ हतो । 'शब्दान्तरार्थापोहं हि खार्थे कुर्वती श्रुतिरभिधत्ते' आ प्रमाणे शब्दार्य अने अर्थान्तरापोहरूप सामान्यनुं दिङ्नागे ज वर्णन कयुं छे माटे ते ज अद्यतनबौद्ध कहेवाय । एटले दिन्न अने टीकाकार पण समसामयिक होय एम पण सम्भावना थाय छ । मूलकार पण आ लक्षण ने (पृ ७३७ ) लईने विचार करे छे । आथी मूलकार अने टीकाकार समसामयिक होवा जोइए एम भास थाय छे परन्तु विशेषावश्यकभाष्यनुं उद्धरण टीकाकारे कर्यु होवाथी मूलकारथी पाछळना ज छ ।
१ निच्छयओ सव्वलहु० (पृ. ३४९). २ पण्णवणिज. जं चौदस० अक्खरलंभेण; आ क्रममुद्रितप्रतोमा साथे मळे छ।
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