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जिन भद्रगणिजीना समानकालीन विद्वान् छे एम सिद्ध थाय छे। आ टीकाना परिशीलनथी नक्की थाय छे के आ टीकाकारनो समय सातमी सदीथी पछीनो थई शके ज नहीं। जो के तृतीय अरमां टीकाकारे सांख्यदर्शननुं जे विवेचन कर्तुं छे ते सांख्यसप्ततिनी प्राचीनटीका युक्तिदीपिकानी साथे साम्य धरावे छे । परन्तु तेना आधारे ज टीकाकारे चर्चा करी छे एम कही शकाय तेम नथी । केम के त्यां छेवटमां वार्षगण्यतंत्रनो विचार थई गयो एम Saroj | आधी टीकाकारे स्वसमयमां विद्यमान षष्टितंत्रनामना ग्रन्थना आधारे ज व्याख्या करी छे एम मानी शकाय । ‘युक्तिदीपिका' दिङ्नागना पछीनी छे अने धर्मकीर्ति कुमारिल आदिविद्वानोथी पूर्वतनी छे बीजा अरमां पण 'सम्बद्धादेकस्माच्छेषसिद्धिरनुमानम्' आ सांख्यमतप्रसिद्ध अनुमानलक्षणनुं उद्धरण कयुं छे । अनुमानना 'मात्रानिमित्त संयोगिविरोधि सहचारिखखामिवध्यघातादि' आ सात प्रकारो प्रायः षष्टितंत्रना अनुसारे ज कर्या हशे !
नयचक्रटीकाकारे आखी टीकामां कोई पण स्थले धर्मकीर्ति जेवा प्रखर बौद्ध आचार्यना पुष्कल ग्रन्थो होवा छतां ते आचार्यना विचारो, विवेचनो अने तेना ग्रन्थोनां वाक्योनुं ग्रहण कर्यु नथी । आवात टीकाकारने सातमी सदीना मानवामां आपणने अटकावे छे छतां विशेषावश्यकभाष्यनुं प्रमाण टीकाकारे लीधुं छे आथी सातमी सदी मान्या सिवाय छुटको नथी । जो विशेषावश्यकभाष्यकारनो समय आजे निश्चित करवामां आव्यो छे तेमां वधु शोध थाय तो अमने लागे छे के आ टीकाकारनो पण समय बदलवो पडे अने क्षमाश्रमणजीने छट्ठी सदीना मानवा पडे । आम जो महाभाष्यकार क्षमाश्रमणजी छट्ठी सदीना सिद्ध थाय तो अने कोट्याचार्यमहत्तरी क्षमाश्रमणजीना ज शिष्य छे आ बे मुद्दा विचारतां नयचक्रटीकाकार छट्ठी सदीना सिद्ध था ।
सौनाग अने भागुरि= टीकाकारे व्याकरणना विषयमां आ बे आचार्योनां नाम लीधां छे । 'सुनागस्याचार्यस्य शिष्याः सौनागाः' आ सुनाग आचार्य कात्यायनथी अर्वाचीन छे । 'कात्यायनाभिप्रायमेत्र प्रदर्शयितुं सौनागैरतिविस्तरेण पठितमित्यर्थः ' आ प्रमाणे महाभाष्यप्रदीपकार कैयटे लख्युं छे । सौनागे' पाणिनीयाष्टाध्यायीना ऊपर वार्त्तिक रचेलुं छे । पतञ्जलि लखे छे के ' इह हि सौनागाः पठन्ति वुञश्चाञ् कृतप्रसङ्गः' तथा 'ओमाङोश्च' आ सूत्र ऊपर पतञ्जलिए 'चकार'नं प्रत्याख्यान करीने लख्युं छे के ' एवं हि सौनागाः पठन्ति चोऽनर्थकोऽधिकारादेङ:' वगेरे, आ बधा प्रमाणोथी सौनाग पतञ्जलिथी पूर्ववर्ती छे अने काव्यानथी पछीना छे एम साबित थाय छे। भागुरि आचार्ये व्याकरण-विषयक कोई रचना करी होय तेम 'वष्टि भागुरिरल्लोपमवाप्योरुपसर्गयोः' आ वाक्य ऊपरथी लागे छे ।
आ टीकाकारे द्वितीय अरनी टीकामां कालना वर्णनमां 'सुषमसुषमायां सुषमायां सुषमदुःषमायाञ्चात्रैव.. • चतुरङ्गुलहरिततृणाः आ प्रमाणे सुषमसुषमादिकालनुं वर्णन करतां चार अंगुल प्रमाण घास होय छे । आ वर्णन आ ग्रन्थसिवायना वर्तमानश्वेताम्बरग्रन्थोमां जोवा मळतुं नथी पण दिगम्बराचार्य यतिवृषभकृत 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थनी 'चउरंगुल परिमाणा तणत्ति जाए दि सुरहिगंधड्डा ॥ ३२२ ॥
१ पदमञ्जरी भा० २ पृ० ७६१ । २ कात्यायन, भारद्वाज, सुनाग, क्रोष्टा, बाडव, व्याघ्रभूति, वैयाघ्रपद्य एम सात वृत्तिकारो छे ।
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