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टीकाकारे आ भलामणने विस्तृत करी आपी अने एवी रीते व्याख्या करी के जाणे कोइ कारिकानी व्याख्या करी रह्या होय ! खरेखर टीकाकारे उपर बतावेला श्लोकनी प्रतिको लइने व्याख्या करी रह्या होय तेवो भास थाय छे ने आखी कारिका तेमांथी तैयार थइ जाय छे जे कारिकानुं रूप 'अनुवादादरवीप्सा' आ प्रमाणे तैयार थई जाय छ ।
- आ सिवायना बीजा अर्थोमां पण पुनरुक्तनो अभाव दर्शावनार एक गाथा नन्दिनी हारिभ० टीकामां पृ० ३ नोंधाई छे–'सज्झायझाणतवओसहेसु उवएसथुईपयाणेसु । संतगुणकित्तणेसु य न होति पुणरत्तदोसाओ'। पुनरुक्त दोषनी चर्चा घणी प्राचीन छ । अहीं ग्रंथकारे पुनरुक्तनी चर्चा खास अनुवाद पूरती ज करी छ ।
___ नयचक्रकारे विधिविध्यर नामना द्वितीय अरमां 'यथा विशुद्धमाकाशं० तथेदममृतं सिद्धं० आ बे कारिकाओ संवादकप्रमाणरूपे ग्रहण करेली छे। आ बे श्लोको जो के घणा ग्रंथकारोए लीधा छे खरा, पण तेनां स्थळ के कर्तानो निर्देश कर्यो नथी। बृहदारण्यकमा० (३-५-४३-४४) मां जोवा मळे छे पण आ वार्तिकना कर्ता शंकराचार्यना शिष्य सुरेश्वराचार्य छे जेमनो समय ई० स० नवमी शताब्दीनो पूर्वभाग मनाय छे पण ते बन्ने कारिकाओ तेमनी रचेली नथी किन्तु-उद्धृत ज छे । केमके आमनाथी थोडा काल पूर्वना आचार्य हरिभद्र सू० म० शास्त्रवार्तासमुच्चयमां ( ५४५-६ कारिका.) उद्धृत करेली जोवाय छे । भर्तृहरि विरचित वाक्यपदीय खोपज्ञटीकामां पण आ बे कारिकाओ तथा 'तस्यैकमपि० अने प्रकृतित्वमना०' आ बे कारिकाओ पण उद्धृत करेली जोवा मळे छ । आथी आ कारिकाओ अति प्राचीन छ । माटे आपणा ग्रंथकारथी पण प्राचीन होवाथी एमना समय निर्णयमां कशी ज हरकत आवती नथी । केटलाक विद्वानो धनेश्वरसूरि अने मल्लवादिसूरिने एकज व्यक्ति मानवाने प्रेराय छ । पण तेमां कोई पुष्ट प्रमाण पेश करवामां आवतुं नथी ।
नयचक्रटीकाकार मंगलश्लोकमां तथा पृ० ८१ मां, 'मल्लवादिसूरि' आवो नामोल्लेख करे छे । केटलाक आधुनिक विद्वानो आ नाम कल्पित-विशेषणरूप छे आईं जाहेर करे छे पण ए माटे कोई प्रमाण आपता नथी। ज्यारे खुद ग्रंथकार प्रान्त भागना मूळमां 'श्रीमत्-श्वेतपटमल्लबादिक्षमाश्रमणेन' (पृ० ११०२) आ प्रमाणे 'मल्लवादिसूरि' ना नामनो स्पष्ट उल्लेख करे छे । एमन 'मल्ल' ए नाम दीक्षित थया त्यारनुं ज छे पण ए नामनी पछी 'वादि' शब्दतुं जोडाण एमने वादमां जय मेळव्या पछी थयु होय तो ते संभवित छे अने ते पछी 'मल्लवादि' नामज प्रसिद्ध थयुं हशे! जे थी खुद ग्रंथकार पण पोतानुं नाम 'मल्लवादिसूरि' आ प्रमाणे लखवा लाग्या । माटे 'मल्लवादि' आ नाम केवळ विशेषण रूप नथी ।
वळी आ ग्रंथकार तथा बीजा तमाम ग्रंथकारो नयचक्रना कर्तार्नु नाम मल्लवादिसूरिमहाराज जणावे छ ।
आम आ ग्रंथy नाम, ग्रंथकारनुं नाम अने ग्रंथकारना समयनो निर्णय थई गयो। हवे टीका तथा टीकाकारना विशे विचार चलाविये छीए ।
-टीकाकारआचार्य मल्लवादिसूरिए बनावेल गम्भीर अर्थवाळो दार्शनिक विचारोथी परिपूर्ण नयचक्रशास्त्रनो प्रबल प्रभाव अने रहस्यने समझाववा माटे शासनमान्य तार्किक चूडामणि, सर्वदर्शन विचक्षण, आचार्य श्री सिंहसूरिगणिक्षमाश्रमणजीए 'न्यायागमानुसारिणी' नामनी व्याख्या करी छ ।
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