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निव्वत्तितो कटुचित्तलेखादि, उत्तरगुणनिव्वत्तितो मृताख्यशरीरे' ( नि० चू०) आ प्रमाणे निशीथभाष्यमां उभयव्यतिरिक्त द्रव्यहस्तना मूलोत्तरगुणनिर्वतितरूपथी भेद-विशेष देखाडवामां आव्यो छे । ज्यारे अनुयोगद्वारमा आना भेद पाडवामां आवेला नथी, आथी आ एक प्रकारनो विस्तार ज कहेवाय, आ ज कारणे अनुयोगद्वारनी रचना निशीथभाष्यथी पूर्वनी छे अने निशीथभाष्य तथा बृहत्कल्पभाष्यना का अभिन्न - व्यक्ति होय तो बृहत्कल्पभाष्यनी रचना अनुयोगना पछीनी ज सिद्ध थाय । अनुयोगद्वार नन्दिथी पण पूर्वतन छे केमके अनुयोगर्नु नाम नन्दिमां आवे छे अने नन्दिना कर्ता घणा प्राचीन छ । आथी एटलं तो चोक्कस थाय छे के भाष्यकार वि० प्रथम अथवा बीजी सदीथी पाछळना छे पण पूर्वना नहीं । चोथी शदीथी पाछळना नहीं एटले २ थी ४ सदीनी अन्दरना समयमां भाष्यकारनी सत्ता सिद्ध थाय छ ।
नयचक्रनी टीकामां टीकाकारे करेला उल्लेखथी नन्दिसूत्रनुं कोई भाष्य हशे! तेवी कल्पना थाय छे । प्रथम पृ० २१९ मां नन्दिनुं सूत्र मूकीने ते पछी 'तद्वयाख्याननिदर्शनञ्च' एम कही 'तं जदि आवरिजेज्जा' आ गाथानो उपन्यास कर्यो छे । ते पछी पृ० ४६२ मां आ ज पाठ लीधो छ । त्यां सूत्र तथा भाष्य के व्याख्यानुं नामोच्चारण करवामां आव्युं नथी । तत् पश्चात् पृ० ७४९ मां 'तथा भाष्येऽपि' आ प्रमाणे एक वाक्यनी रचना करीने 'तं पि जदि आवरिजेना' आ गाथा मूकबामां आवी छे। आथी नन्दी ऊपर तेनुं व्याख्यारूप कोई भाष्य हशे ! आq अनुमान थाय छ ।
___ आम होवा छतां अहींयां भाष्यरूपे उद्धृत करेली गाथा नहिवत् फरकवाळी बृहत्कल्पभाष्यमां जोवा मळे छे । ते जेम नन्दिसूत्रकारे नियुक्तिनी गाथाओ लीघेली छे, तेम कदाच बृहत्कल्पभाष्यनी ज गाथा लीघेली होय ! अथवा नन्दिभाष्यनी ज आ गाथाने बृहत्कल्पभाष्यकारे लीधी होय ! गमे तेम होय पण नयचक्र-टीकाकार तो नन्दिनुं भाष्य ज समजे छ । एमना समयमा नन्दी- भाष्य विद्यमान होय अने एमणे आ उल्लेख को होय ! तो नन्दीनुं भाष्य केटली गाथात्मक हतुं ? एना रचयिता कोण ? क्यारे थया ? आ बधो विषय उपस्थित थाय छे । मूळकारे आ भाष्यगाथानी साक्षी कोई पण स्थळे आपी नथी । टीकाकारे ज आ भाष्यगाथानी साक्षी आपी छे । हालमां उपलब्ध थता नंदिमां आ गाथासूत्रथी भिन्न भाष्य तरीकेनो उल्लेख देखातो नथी फक्त भाष्य-गाथारूपे सह प्रथम उल्लेख करनार होय तो नयचक्रटीकाकार आ० सिंहसूरिगणि क्षमाश्रमणजी ज छे । आथी नन्दीभाष्यनी रचना मल्लवादिसूरि पछीनी हशे ! अने नयचक्रटीकाकारथी पूर्वनी छे आटलं ज हालमां नक्की करी शकाय छे ।
___ मूळकारे पृ० १५३ मां 'उक्तं हि' कहीने कोई ग्रंथकारना वचनरूपे 'अन्यत्रानुवादादरादिभ्यः' आ प्रमाणे पुनरुक्तनो अपवाद बताव्यो छे । आने मळतो अपवाद गौतमसूत्रमा 'अन्यत्रानुवादात्' आटलो ज जोवामां आवे छे । आ अपवादोनो संग्रहकरनारी कारिकाओ उपलब्ध थाय छे पण ते ग्रंथकार करतां घणा पाछळना ग्रंथकारोथी उद्धृत छे । बृ० क० टी० पृ० ४०१ मां, षड्दर्शनसमुच्चय पृ० १५-११, स्था० स्थान २ उद्देश ३ नी टीकामां 'अनुवादादरवीप्साभृशार्यविनियोगहेत्वसूयासु । ईषत्. संभ्रमविस्मयगणनास्मरणेष्वपुनरुक्तम् ॥ जो के मूळकारनी सामे आवी कारिका हशे के कोई सूत्र हशे ! अथवा बीजा ग्रंथोमां छूटी छवाइ नोंध हशे ! अने तेनो अहीं मूळकारे 'अनुवादादरादिभ्यः' थी भलामण करी होय ।
न०प्र०५
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