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________________ अनुवादरूपे छपायेली छे । संस्कृतथी अन्य भाषामां अने अन्य भाषाथी संस्कृतमा भिन्न भिन्न समये मात्र भाषाविज्ञो द्वारा अनूदित थयेली तेनी कारिका अने वृत्तिमा फेरफार थयो होय ए सम्भवित छ । माटे ज आ नयचक्र अने टीकामां आवती कारिका अने वृत्तिमा भिन्नता रहे ए खाभाविक छ । जेम-टीकाकारे 'विषयो हि नाम यस्य इत्यादि जे वाक्य लख्यु छे तेमां अने दिङ्नागनी उपलब्ध संस्कृत आलम्बन-परीक्षा-वृत्तिमां फरक देखाय छे । छतां उद्धरणमां अमोए ए अपेक्षाए ज ते वाक्यने आलम्बनपरीक्षावृत्तिनुं लख्युं छे । एवी ज रीते 'प्रमाणसमुच्चय' नी कारिकाओमां पण फेरफार जोवामां आवे छे । परिवर्तित संस्कृतग्रन्थोना पाठने आधारे नयचक्र अने तेनी व्याख्यानुं शुद्धिकरण एकांत प्रामाणिक मनाय नहि । बृहत्कल्पभाष्यना कर्ता संघदासगणि महत्तर छ । बृहत्कल्पनी एक गाथाने आ ग्रन्थमां पू० मल्लवादिसू० म० ग्रहण करी छ । आ गाथाने नियुक्तिनी कहेवी के भाष्यनी कहेवी ए मुशकेल छे। जो नियुक्तिनी आ गाथा होय तो कशुं ज विचारवानुं रहेतुं नथी । पण मुद्रित बृहत्कल्पमां ए गाथाने भाष्यगाथाना नंबरमां मूकवामां आवी छे । जो के बृहत्कल्पभाष्यनी गाथाओ अने नियुक्तिनी गाथाओने जुदी तारववी ए वर्तमानमा कठिन काम छे मलयगिरि जेवा प्रखर टीकाकारे पण भाष्यगाथा अने नियुक्तिगाथाने जुदी बताववानी हाम भीडी नथी । छतां य ए गाथाने अमोए मुद्रित कल्पना आधारे उद्धरणमां भाष्यगाथा तरीके मूकी छे । ___आ भाष्यना कर्ता संघदासगणिमहत्तर वसुदेव हिण्डीना कर्ता करतां भिन्न छे आम केटलाक विद्वानो माने छे ते उपरांत वसुदेवहिण्डीना प्रणेताथी वृहत्कल्पना भाष्यकारने अर्वाचीन माने छे। वृहत्कल्पलघु भाष्यना कर्ती संघदासगणि महत्तर क्यारे थया? आ विषयनो निर्णयात्मक स्फोट हजु सुधी थयो नथी । जो मल्लवादिसूरिए लीधेली गाथा भाष्यनी ज होय तो तो कहेवू ज पडे के वि० पांचवी सदीथी पूर्वना छे पण पछीना नथी ज। केटलाक विद्वानो दासान्त नाम जोईने वि० चोथी सदीना आ आचार्य छे केमके ते पहेलो दासान्त नाम राखवामां आवतुं न हतुं एम माने छे ते ठीक लागतुं नथी। भगवान महावीरना समयनी आवती कथाओमां पण जिनदास आदि दासान्त नाम जोवामां आवे छे। आर्य सुहस्तिना समयमां थएली नर्मदासुन्दरीनी कथामां पण दासान्त नाम आवे छे । तेम ज चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुखामिना चार शिष्योमा एकनुं नाम गोदास हतुं अने तेमना नामथी गोदास गण नीकळ्यो। आ नाम कल्पसूत्रनी स्थविरावलिमां आवे छे। माटे केवल दासान्त नाम जोईने चोथी, छट्ठी, अने सातमी सदीनी कल्पना कल्पनामात्र छे यथार्थ नथी । तथा जैनाचार्योंमां भाष्यकार अनेक थया छे तेमा सहुथी प्राचीन भाष्यकार संघदासगणि महत्तर हशे! बृहत्कल्पभाष्यना कर्ता संघदासगणि म० यदि निशीथ भाष्यना कर्ता होय तो अनुयोगद्वारनी रचना थया पछीना ज संघदासगणी सिद्ध थाय । केमके अनुयोगद्वारमा निक्षेपाओगें संपूर्ण अने विस्तृत वर्णन होवा छतां तेमां ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यहस्तना 'मूलोत्तरो य दव्वे' (नि० भा०) 'मूलगुण १द्वादशा. पृ० १०४ पं० १८, आलम्बन परीक्षावृत्ति पृ. ३ पं. ९॥ २ आ प्रमाणसमुच्चय पूर्ण उपलब्ध नथी। एटले तेना अनुमानवाद अपोहवाद वगेरे परिच्छेदो मेळवी शकया नथी। आ ग्रन्थमा मूळकार अने टीकाकार भनुमान आदि परिच्छेदोना श्लोको अने तेनी व्याख्याओ जरूर लीधेली हशे, परन्तु आ ग्रन्थमां मळेलावचन अने विचारोथी मात्र श्लोकोनी पूर्ति करवामां आवी छ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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