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नन्दिसूत्रनुं उद्धरण आपे छे। आथी आ ग्रन्थकर्ताथी नन्दिसूत्रना कती घणा प्राचीन छ । आ देववाचकगणीना समसामयिक स्कन्दिलाचार्यनो समय वी० नि० सं० ८२७ थी ८४० ए पण ठीक बंध बेसतो नथी। आ आचार्य म० नो समय अमे पाछळ सिद्धसेनदिवाकरसूरि म० नी समयविचारणामां विचारी गया छीए।
___ आ नयचक्रमां वि० सं० ६०० थी पूर्ववर्ती बौद्धाचार्य धर्मकीर्तिन वाक्य के वक्तव्य अथवा मन्तव्य जोवामां आवतुं नथी । आथी धर्मकीर्तिथी पूर्ववर्ती आ नयचक्रकार छ एमां लेशपण शङ्काने अवकाश नथी। महाभाष्यकार जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणजीए मल्लवादिना नामथी विख्यात युगपदुपयोगवादनुं खण्डन कयें छे। आथी ६४५-६७७ थी पूर्वना मल्लवादि छे । दिङ्नागर्नु खण्डन करनार उद्योतकर के जे धर्मकीर्तिथी पूर्ववर्ती छे जेनो सत्तासमय छट्ठी सदी छे एमना ग्रन्थनो कशो आधार प्रकृतग्रन्थमा लेवायो होय तेम लागतुं नथी । आथी आ आचार्य म० उद्योतकरथी पण पूर्ववर्ती छे । अमने लागे छ के दिङ्गनागथी पाछळना आ आचार्य बहु नजीक पाछळना छे एम एमना ग्रन्थना अवलोकनथी लागे छे। आ वात बराबर होय तो नयचक्रकार उद्योतकरथी निःशंक पूर्ववर्ती छे । दिडूनागनो समय ई० ३४५-४२५ केटलाक माने छे ते हिसाबे ई० ४५० आसपास नयचक्रकारनो समय सिद्ध थाय छे ।
शतपथ ब्राह्मणना भाष्यकार हरिस्वामी के जेओ स्कन्दखामीना शिष्य छ । स्कन्दखाभी ऋग्वेदना भाष्यकार छे अने निरुक्तभाष्यटीकाकार पण छे । ऋग्वेदन भाष्य स्कन्दस्वामीए वि० सं० ६८० मां रच्यु । आ स्कन्दखामीए पोताना निरुक्त भाष्यवृत्ति ८-२ मां श्लोकवार्तिकनो एक श्लोक अने आ ज प्रकरणमा तंत्रवार्तिकनो एक श्लोक ३-१० तथा १०-१६ मां भामहना श्लोकनुं उद्धरण कयु छ । हरिखामी पण पोताना भाष्यमा 'इति प्रभाकराः' आम लखीने कुमारिलभट्ट अने प्रभाकरना मतनुं स्मरण करे छे । प्रभाकर कुमारिलभट्टना शिष्य छ । आ कुमारिल धर्मकीर्तिना समसामयिक छ । परस्परना ग्रन्थोमां परस्पर नाम अने मतनुं खण्डन करवामां आव्युं छे । आ हिसाबे कुमारिल अने धर्मकीर्ति, स्कन्दखामीथी (आमनो सत्तासमय वि० सं० ६८० थी पूर्वनो छे) एटले ६०० थी पूर्वना छे ज्यारे मल्लवादिसूरिमहाराजे धर्मकीर्ति तथा कुमारिलनी कोई युक्ति के विचारनो संग्रह कर्यो नथी तेथी पण आ बन्ने आचार्यथी पूर्ववर्ती छे एमां थोडो पण संशयने अवकाश नथी।
राहुलसांकृत्यायन प्रमाणवार्तिकनी भूमिकामां दिङ्नाग अने धर्मपालमां ई० ४२५ (१) अने ई० ५७५ अर्थात् १५० वर्षनु अन्तर बतावे छे, एटले दिङ्नागनो समय विक्रमनी चोथी-पांचमी सदीना वचमां तो आवे ज । आम मल्लवादि सू० म० नो जे समय अमे निश्चित कर्यो छे ते समयमां कशो फरक
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१ जुओ बृहद् इतिहास। २ आ युगपदुपयोगवाद मल्लवादिसूरिमहाराजनो ज आविष्कार छ एम मानी शकाय नहीं कारण के सिद्धसेन दिवाकरजीना बनावेला सम्मतितर्कमा युगपदुपयोगद्वय, ऋमिकोपयोगद्वय, उपयोगद्यामेद आ त्रणेनो विचार जोवामां आवे छे॥ ३ यदब्दानां कलेजेग्मुः सप्तत्रिंशच्छतानि वै। चत्वारिंशत् समाश्चान्यास्तदा भाष्यमिदं कृतम् ॥ (कलि संवत् ३७३०) आम भाष्यना अन्तमा लखे छे. जे संवत् वि० सं० ६९६ ना बराबर छे. पुलकेशी द्वितीयना लोह
रना ताम्रशासनमा पण शक सं० ५५२ लखेलो छे. आ हरिखामी चंद्रगुप्त विक्रमादित्यना धर्माध्यक्ष छे 'श्रीमतोऽवन्तिनाथस्य " विक्रमार्कस्य भूपतेः । धर्माध्यक्षो हरिस्वामी व्याख्यात् शातपथीं श्रुतिम् ॥' आम जणावे छ।
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