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आ सुश्रुतना प्रतिसंस्कारकर्ता तरीके डल्लन नागार्जुनने कहे छ । नागार्जुनो अनेक थया छ। बौद्ध शून्यवादी एक नागार्जुन छे, बीजा एक लोहशास्त्र, योगशतक आदि ग्रन्योना कर्ता रसशासवेत्ता नागार्जुन छ, त्रीजो नागार्जुन शातवाहन राजाना मित्रतरीके हर्षचरितमां बाण कविए कहेल छ । प्रबन्धचिन्तामणिमां जैन श्रुतपरम्परामां शातवाहनना समकालीन नागार्जुनने रसशास्त्रना विद्वान मान्या छ।
सुश्रुतनो प्रतिसंस्कार ई० स० बीजाथी चोथा शतक बच्चे थयो छे केम के सांख्यकारिकामांथी सुश्रुतमा स्पष्ट उतारो करेलो छ । माटे कनिष्कना समसामयिक शून्यवाद प्रतिष्ठापक नागार्जुन केवी रीते प्रतिसंस्कर्ता थई शके ! ते ज समयमां चरक वैद्य पण हता एम केटलाको माने छे । अने शातेवाहनराजा यज्ञश्रीसातकर्णी कहेवाय छे । अने आजथी २००० वर्ष पूर्वना नागार्जुनना 'उपायहृदय' नामना दर्शन ग्रन्थमा उद्देशप्रकरण पछी आगमवर्णनना प्रसङ्गमां 'भैषज्यकुशलः मैत्रचित्तेन शिक्षकः सुश्रुतः' आ प्रमाणे सुश्रुतनो उल्लेख करवामां आव्यो छे । व्या० महाभाष्यकारे १-१-३ सूत्रना भाष्यमा 'सौश्रुतः' एम उदाहरण आप्यु छ । २-१-१७० सूत्रना 'शाकपार्थिवादीनामुपसंख्यानम्' आ वार्तिकना उदाहरणमा 'कुतपसौश्रुतः आ प्रमाणे छे । पाणिनिए पण ६-२-३७ सूत्रना गणपाठमां सौश्रुतपार्थिवशब्द लीधो छ । एटले सुश्रुत आ बधा आचार्योथी पूर्ववर्ती छे । अने सुश्रुत आचार्ये पोताना ग्रन्थमा पूर्वाचार्यरूपे 'सुभूतिगौतम नो उल्लेख कर्यो छे । आ सुभूति बुद्धना शिष्य सुभूति नथी, बौद्धग्रन्थोमां अध्यात्मविषयमा ज सूभूतिनो उल्लेख छ । आ सूभूति गौतम वैद्याचार्य अन्य छे । आ सुश्रुतनो समय हार्नल महाशय वि० पू० ६००. तथा ह्यासलर महाशय एवं श्री गिरीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय ई० पू० १००० वर्ष माने छ ।
मीमांसा. ___ मीमांसाना बे भेद छे-पूर्वमीमांसा अने उत्तरमीमांसा । पूर्वमीमांसाना सूत्रकार जैमिनि ऋषि छ। उत्तरमीमांसाना सूत्रकार वेदव्यासमहर्षि छ। आ बंने महर्षिओ वेदना कर्मकाण्ड अने ज्ञानकाण्डना प्रखर विवेचक छ । आ बन्ने ऋषिओ समानकालीन छे केमके जैमिनिसूत्रोमां बादरायण (व्यास) नुं अने ब्रह्मसूत्रमा जैमिनिनो उल्लेख छ । कृष्णद्वैपायने वेदनो व्यास अर्थात् पृथक् करण कयुं एटले एने वेदव्यास कहेवामां आवे छे । आ व्यासने ज महाभारत-पुराण आदिना रचयिता मानवामां आवे छे । आ विषयमा ऐतिहासिको एक मत नथी । व्यासना शिष्य जैमिनि छे एम केटलाक पण्डितो माने छ । जैमिनिना बार अध्यायना एक पण सूत्रमा बौद्धोना कोई पण तत्त्व-विचारनो उल्लेख नथी। आ शास्त्र यज्ञ विगेरे कर्मकाण्डर्नु प्ररूपक छे । आ शास्त्रमा वस्तुतत्त्वना विचार विषे विशेष ध्यान आपवामां आव्यु नथी । केवळ यज्ञयागादि क्रियाओनी ज चर्चा करवामां आवी छे माटे ज मल्लवादिसूरिम० आ वेदवादिमीमांसकने अज्ञानवादी कह्यो छ । अने वस्तुतत्त्वविचारमा अज्ञानवाद मानवामां आवे तो क्रियानो उपदेश अने शास्त्र पण अव्यवस्थित थई जाय छे माटे अग्निहोत्रादिविधायक शास्त्र व्यर्थ छे एम कहीने विस्तारपूर्वक विवेचन करवा छतां
१'तामेकावली तस्मान्नागराजान्नागार्जुनो नाम लेभे च, त्रिसमुद्राधिपतये शातवाहनाय नरेन्द्राय सुहृदे स ददौ ताम' (हर्षचरित) २ आद्य शातवाहन सिसुके सो वाहनवाळी सेनाथी राज चलाव्यं माटे तेने तेना वंशने शातवाहन वंश कहेवामां आवे छे ।
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