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चरकने ज अग्निवेशतंत्रना प्रतिसंस्कर्ता माने छे परन्तु नामनी सदृशताने मूकीने कोई चोक्खो पुरावो मळतो नथी । आ कनिष्कनो समय वि० पू० ५० नी आसपासनो छ । 'चिकित्सितं यच्च चकार नात्रिः पश्चात्तदात्रेय ऋषिर्जगाद' आ रीते बुद्धचरितमां अश्वघोष पण आत्रेयना उपदेशने संहिता कहे छ । चरक केवळ प्रतिसंस्कर्ती छे कर्ता नथी, एम माने छे । माटे अश्वघोषथी पण प्राचीन होवाथी तेना कर्ता कनिष्ककालीन चरक थई शकता नथी।
आ चरकसंहितामा ४१ अध्यायने उमेरनार दृढबल काश्मीर प्रान्तना पञ्चनदपुरमा जन्मेला छे । एमणे उमेरेला पाठोना उद्धरणकर्ता चक्रपाणि, दत्त अने विजयरक्षितआदि विद्वानो ते पाठने काश्मीरपाठ कहे छ । दृढबले उमेरेला पाठनुं उद्धरण वाग्भटे कयुं छे । वाग्भटनो एक पाठ वराहमिहिरे पोताना कान्दर्पिकप्रकरणमा टांक्यो छे। एटले वराहमिहिरथी पूर्ववर्ती वाग्भट छे । तेनाथी पूर्वकालीन दृढबल छ । वाग्भटने ई० पांचवी सदीनो मानवामां आवे छे । दृढबलनो समय ई० स० ३०० थी ४०० नी वच्चे मानवामां हरकत नथी । दृढबल कपिलबलेनो पुत्र छ । आ कपिलबलनो अष्टाङ्गसङ्ग्रहमा वाग्भटे उल्लेख कर्यो छ ।
सुश्रुत. -- दिवोदासधन्वन्तरिए शल्यतंत्र विषे आपेला उपदेशनो सङ्ग्रह करी सुश्रुते आ तंत्र रच्यु । परन्तु वर्तमान सुश्रुतसंहितामा आयुर्वेदना आठे अंगोनुं वर्णन छ । प्रथम पांच स्थानमा १२० अध्याय छे । आने सौश्रुततंत्र कहे छे । आने वृद्धसुश्रुत पण कहे छे । तेमां पछीथी ६६ अध्यायोनुं उत्तरतंत्र उमेरायुं छे। आ उत्तरतंत्रमा अग्निवेश, मेल, विदेह, पार्वतक, जीवक वगेरेनां तंत्रोमांथी अनेक विषयो लीधेला छे । उत्तरतंत्रकारे उत्तरतंत्रने उमेरतां पूर्वनां पांच स्थानोमां सुधारो वधारो कर्यो छे के नहीं ए कहेवू मुश्केल छ । आ उत्तरतंत्रने कोणे उमेयु ! ते पहेलां सुश्रुततंत्रनो प्रतिसंस्कार कोइए को हतो के नहि ? एना उत्तरमा हालनी प्रतिसंस्कृत सुश्रुतसंहिता मौन छे केमके अनेक टीकाकारोए उद्धृत करेला वृद्धसुश्रुतना पाठो आ सुश्रुतमां मळता नथी । सुश्रुतनो प्रतिसंस्कार अनेक वार थयो छ । प्रतिसंस्कारकर्ता तरीके वृद्धवाग्भट, जेजट, चन्द्रट अने नागार्जुनना नामो बोलाय छ ।
__ 'विश्वामित्रसुतः श्रीमान् सुश्रुतः परिपृच्छति' 'शालिहोत्रमृषिश्रेष्ठ सुश्रुतः परिपृच्छति' आ वचनथी सुश्रुत विश्वामित्रना पुत्र तरीके जाणवामां आवे छे । पहेलं वचन सुश्रुतसंहितामा ज छे । ते अश्ववैद्यना विषे शालिहोत्रऋषिने पूछे छे एटले आ सुश्रुत महर्षिओना समसामयिक मानवामां आवे छे । आ सुश्रुतसंहिता मूलभूत सुश्रुत जाणवू । प्रतिसंस्कृत थएल सुश्रुत चरकना प्रतिसंस्कार पछीना समयनु छ । अर्थात् ई० स० पांचमा शतकमां उपलब्ध चरक अने सुश्रुतसंहिता तैयार थई गई हती।
१ जो के नागार्जुने पोताना ग्रन्थोमां कनिष्कना नामनो निर्देश कर्यो नथी अने कनिष्कना सिक्काओ सारनाथ साँची मथुरा वगेरे स्थलोथी मळ्या छे तेमां सं० ३ थी ४१ लखेलुं जोवामां आवे छे जो आ सं० ने कनिष्कनो मानवामां आवे तो नागार्जुन कनिष्कनो समसामयिक सिद्ध थतो नथी। तेम ज नागार्जुनना समसामयिक मनाता कुमारलात के जे सौत्रान्तिक मतना प्रधान आचार्य मनाय छे तेओए पोताना ग्रन्थमा कनिष्कर्नु अतीत कालना नृपति रूपे वर्णन कर्य छ । २चरकचिकित्सा स्थान ३०।२९.॥
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