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________________ मिक्षु आत्रेय-बौद्धजातकमां लखे छे के बुद्धना समये अथवा थोडाक पूर्वसमयमा तक्षशिलामां वैद्यकविद्याना मुख्य अध्यापक भिक्षु आत्रेय हता। बुद्धना, प्रद्योतना अने बिम्बसारना चिकित्सक जीवक कुमारभृत्य आ आत्रेयनी पासे ज वैद्यक शीख्या हता । आ आत्रेय ज चरकसंहिताना मूळ प्रवक्ता पुनर्वसु आत्रेय छे आवो हर्षल महाशयनो मत छ । आ मत युक्त होय तो ई० पू० ६०० नी आसपास आत्रेय थया हशे ! केटलाक इतिहासवेत्ताओ पुनर्वसु आत्रेय अतिप्राचीन छे ने भिक्षु आत्रेयथी अन्य छे एम माने छ । परन्तु पुनर्वसु आत्रेय अने भिक्षु आत्रेय समकालीन छे केमके यज्ञपुरुषीय अध्यायमा पुनर्वसु आत्रेयनी साथे चर्चा करनाराओमां भिक्षु आत्रेयनु पण नाम छ । चरक-पाणिनि सूत्रमा 'कठचरकाल्लुक्' थी निर्देश करायेला चरक यजुर्वेदनी शाखाना प्रवर्तक ऋषि छे, पण अग्निवेशतंत्रना प्रतिसंस्कर्ता चरक नथी । 'पातञ्जलमहाभाष्यचरकप्रतिसंस्कृतैः । मनोवाक्कायदोषाणां हर्नेऽहिपतये नमः ॥' आ श्लोकथी चरकना टीकाकार चक्रपाणिदत्त टीकाना आरम्भमां चरकना प्रतिसंस्कार-कर्ता पतञ्जलिने नमस्कार करे छे तथा पतञ्जलि अने चरकने एक माने छ । तथा योगसूत्रवृत्तिकार भोज, योगवार्त्तिककार विज्ञानभिक्षु तथा वैयाकरण नागेशभट्ट पण चरक अने पतञ्जलिने अभिन्न माने छे केमके चरक मोक्षनुं साधन योग माने छे तथा तत्त्वोनी गणनामां सांख्य-सम्मत तत्त्वोनुं ज अनुकरण करे छे। जो के भर्तृहरि, कैयट आदि महाभाष्यना व्याख्याकारोए पतञ्जलिनो योगसूत्र के चरकसंहिताना कता तरीके क्यांय पण उल्लेख कर्यो नथी। केटलाको योगसूत्रमा शून्यवाद अने विज्ञानवादनुं निराकरण आवतुं होवाथी तेना की पतंजलि नथी आम वदे छे पण आ कथनमां आ प्रबल प्रमाण कही शकाय नहीं केमके शून्यवाद अने विज्ञानवाद बुद्धनो ज छे एम बौद्धो पण कही शके तेम नथी माटे पतंजलिने योगसूत्रकर्ता मानवामा प्रबल विरोध आवतो नथी । केमके एक पतंजलि सामवेदनी शाखाना प्रवर्तक छे। योगसूत्रभाष्यमा वाचस्पतिमिश्र पण कोई पतंजलिनुं वचन टांके छे । युक्तिदीपिकामां पण पतंजलिना सांख्यविषयक वाक्यो जोवामां आवे छे । आंगिरस-पतंजलिनो उल्लेख मत्स्यपुराणमां छे । पाणिनि २-४-६९ उपकादिगणमां पतंजलिनुं स्मरण करे छे । चरकमां सांख्योनां चोवीस तत्त्वोनुं वर्णन छ जे पश्चशिखे ईश्वरने मूकीने चोवीस तत्त्व- वर्णन कर्यु छे । चरकमां तन्मात्रानो उल्लेख नथी। एटले आ चरकने पतञ्जलि मानवामां वांधो नथी । आ पतञ्जलि व्याकरणमहाभाष्यकर्ता पतंजलिथी अन्य छ। पातञ्जलशाखा, योगसूत्र अने निदानसूत्रना कर्ता एक ज पतञ्जलि छे । महाभाष्यकार पतंजलि अन्य छे । चरकमां वैशेषिकसूत्रमा कहेला पदार्थोनो उल्लेख छ माटे चरकप्रतिसंस्करण कणाद ऋषिना पछी- अने महाभाष्यकार पतंजलिथी पूर्वन होवू जोइए ! प्रख्यात राजाधिराज कनिष्कना दरबारमा एक वैद्य चरक हतो । केटलाक इतिहासकारो आ - - १ जुओ चरक सू० अ० १५ यज्ञपुरुषीय अध्याय। २ प्रकृतेर्महान् ततोऽहङ्कारस्तस्माद्गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पंचभ्यः पंच भूतानि ॥ अने पुरुष एम २५ तत्त्व आ सांख्यसप्ततिनो मत छ। पातंजलयोगसूत्र अने महाभारतमा २६ तत्त्व आवे छे। चरकमा २४ तत्त्वनो उल्लेख छ। २ समवायोऽपृथग्भावो भूम्यादीनां गुणैर्मतः। स नित्यो यत्र हि द्रव्यं न तत्र नियतो गुणः ॥ यत्राश्रिताः कर्मगुणाः कारणं समवायि तत् । तद्रव्यं समवायी तु निश्चेष्टः कारणं गुणः॥ चर० सू० अ.१ श्लो ४९,६०॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002587
Book TitleDvadasharnaychakram Part 4
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorLabdhisuri
PublisherChandulal Jamnadas Shah
Publication Year1960
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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