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'जयमङ्गला' मां 'पश्चशिखेन मुनिना बहुधा कृतं तंत्रं षष्टितंत्राख्यं षष्टिखण्डं कृतमिति तत्रैव षष्टिरर्था व्याख्याताः' आप्रमाणे 'शङ्कराचार्य' पण कहे छे । 'सुवर्णसप्तति' मां पण 'अयं पश्चशिखः षष्टिसहस्रगाथात्मकं विपुलं तंत्रं प्रोक्तवान्' ए ज प्रमाणे जोवा मळे छे । आ षष्टितंत्र वाचस्पतिमिश्रना जोवामां आव्यु नथी एम अमारूं मानतुं छे कारण के 'रूपातिशयाः वृत्त्यतिशयाश्च परस्परेण विरुध्यन्ते सामान्यानि त्वतिशयैः सह प्रवर्त्तन्ते' आ वाक्यने तत्त्ववैशारदीमां पञ्चशिखाचार्य- जणावे छे पण विक्रमनी छट्ठी शताब्दिमां बनेली युक्तिदीपिकामां 'तथा च भगवान् वार्षगण्यः पठति' आ प्रमाणे नामोल्लेखपूर्वक 'रूपातिशयाः' आ वाक्यने टांक्युं छे । तेमां ज 'तथाच वार्षगणाः पठन्ति तदेतत्रैलोक्यं व्यक्तेरपैति इत्यत्र प्रतिषेधात् अपेतमप्यस्ति विनाशप्रतिषेधात् संसर्गाच्च सौक्ष्म्यं सौक्ष्म्याच्चानुपलब्धिरिति' आ वचन आवे छे के जेनो 'व्यासभाष्य मां पण उल्लेख आवे छे । तेनी व्याख्यामां वाचस्पतिमिश्रे व्यासमहर्षिनुं छे एम जणाव्युं छे । आ वाक्यने केटलाक इतिहासप्रेमिओ न्यायसूत्रना 'वात्स्यायनभाष्य' मां जोईने व्यास अने वात्सायनना समयमां पौर्वापर्यनी कल्पना करे छे । आम षष्टितंत्रना कर्तृविषयमां चोक्कस निर्णय करी शकायो नथी । तेमां 'परमार्थ' नामना बौद्धभिक्षु अने ऐतिहासिको, अणजाणपणूं ज कारण छ ।
अमने तो लागे छे के वार्षगण्य ए व्यक्ति विशेषतुं नाम नथी पण जेम माठर गोत्रनिष्पन्नाम छे पक्षिलखामीनु वात्स्यायन छे अने उद्योतकरचें भारद्वाज छे तेम पंचशिखनो ज अपर पर्याय वार्षगण्य हशे ? वृषगण गोत्रयी बनेलं हशे ? पाणिनि सूत्र 'गर्गादिभ्यो यज्' आ सूत्रना गर्गादिगणमां वृषगण शब्द छे 'वृषगणस्य गोत्रापल्यं वार्षगण्यः' आ प्रमाणे यञ् प्रत्ययान्त आ शब्द छ। 'नडादिभ्यः फक्' आ सूत्रमा आवेला नडादिगण मां 'अग्निशमन् वृषगणे' आ पाठ आवे छे वृषगण गोत्रमा अग्निशमन् शब्दथी फक्प्रत्यय आवे छे. आ गोत्र पारिभाषिक छ।
वार्षगण्य ईश्वर कृष्णना गुरु छे प्रथम शतकवी छे आ प्रमाणे परमार्थ कहे छे, पण ते बराबर नथी केमके सुप्राचीन अर्हदागम अनुयोगद्वार, नन्दिसूत्र. कल्पसूत्र तथा भगवतीजीमां पण षष्टितंत्रनु नाम आवे छे । अर्थात् षष्टितंत्र घणुं ज प्राचीन छे कोई ठेकाणे षष्टितंत्रना कर्ता तरीके पश्चशिखाचार्य- नाम आवे छे तो कोई ठेकाणे वार्षगण्यनुं नाम आवे छे ते परस्पर विरुद्ध नथी पण एक गोत्रज नाम छे ज्यारे बीजं व्यक्तिनुं नाम छे बन्ने एक छे एम लागे छे ।
ईश्वरकृष्ण. ___नयचक्रकारे ईश्वरकृष्ण विरचित 'सांख्य सप्तति' नी एक पण कारिका लीधी नथी । पण प्रधानपणे षष्टितंत्रमा निरूपेला ज पदार्थो लीधा छे । आथी ज अमणे 'किमवशिष्यते वार्षगणे तंत्रे' आम कयुं छे । ईश्वरकृष्ण विक्रमनी प्रथमसदीना मनाय छे । आ ग्रन्थकारे ज्या ज्यां खण्डनीय विषय लीधो छे ते सर्वदर्शनो ना मूलभूत ग्रन्थोनो ज आधार लइने । आथी सांख्यसप्ततिनो आधार नहि लेवायो होय ! आ विषयमा विद्वानो विचार करशे!.
आ सांख्यसप्ततिनो खण्डनात्मक ग्रन्थ वसुबन्धुए रचेली परमार्थसप्तति छे एम बौद्ध ऐतिहासिको माने छ । तेओ कहे छे के एक समये विन्ध्यवासी नामना सांख्याचार्ये वसुबन्धुनी अनुपस्थितिमां तेना गुरु
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