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करे छे उपलभ्यमान वैशेषिकसूत्रना टीकाकारो प्रशस्तमतिना मतनो कचित ज उल्लेख करे छ । वैशेषिक दार्शनिक आ प्रशस्तमति मल्लवादिसूरीश्वरना पूर्ववर्ती छे आ तो सिद्ध ज छ ।
बीजा अनेक प्राचीन वैशेषिकसूत्रना व्याख्यानग्रन्थो होवा छतां नयचक्रकार कटन्दी- ज खण्डन शा माटे करे छे ? जवाबमां ए ग्रन्थमा जैनदर्शन तरफथी पूर्वपक्ष करीने तेनु खण्डन करवामां आव्यु छ माटे तेना प्रतिखण्डनार्थे ग्रन्थकारे तेनु ज ग्रहण कर्यु छे एम लागे छे । नयचक्रना अभ्यासथी आ हेतु सहज जाणी शकाय छे ।
___ कटन्दीमां आवता स्याद्वादना खण्डनथी एक अनुमान थाय छे के ते समयमां पण स्याद्वादने न्यायनी शैलीए चर्चवामां आवतो हशे ! आजे आ कटन्दीग्रंथ लुप्तप्राय थई गयो होवाथी आपणने अप्राप्य थई गयो छ । अमारूं तो मानवु छे के जैन शासनमा अमुक विद्वाने ज न्यायशैलीए प्रथम वस्तुनिरूपण कयुं छे ते पहेला सामान्यतया निरूपण हतुं आवी कल्पना करवी निर्मूळ छ ।
प्रशस्तमति. ____ आ एक वैशेषिक सूत्रना व्याख्याकार छे आनो उल्लेख जैन-बौद्धवाङ्मयमां घणो जोवा मळे छ । तेमनाथी निर्मित कयो ग्रन्थ छे ते जाणवामां आव्यु नथी तो पछी तेनी प्राप्तिना विषे शुं कहेवू ! फक्त ते ते ग्रन्थोमा एमना नामथी उद्धरेला वाक्यो ज जोवा मळे छ । आ नयचक्रमा टीकाकार 'कटन्यां टीकायाञ्च' (पृ. ६२०) एम चशब्दथी कटन्दीनी एक टीकार्नु ज्ञान करावे छे । आगळ 'टीकायां प्रशस्तमतौ' (पृ. ६२१) आम लखीने ते टीकाना कर्ता प्रशस्तमति छे, एम आपणने भास करावे छे । आथी वैशेषिकसूत्रनी कटन्दीटीका रावणकृत छे तेना उपर प्रशस्तमतिनी टीका छे एम तात्पर्य नीकळे छ । जेम पूर्व अरोमां वसुबन्धु अने दिङ्नाग आ बन्नेना मतनुं साथे साथे निराकरण कयु छे तेवी रीते अहीं पण कटन्दी अने तेनी टीकार्नु साथे ज खण्डन कयु छे ।
'युक्तिदीपिका' नामनो सांख्यकारिका ऊपरनो टीकाग्रन्थ छ । तेमां प्रशस्तमतिर्नु नामछे तथा दिङ्नाग सुधीना बौद्धपण्डितोना मतनुं खण्डन छे। पण तेमां धर्मकीर्तिनो उल्लेख नथी तेथी आ ग्रन्थ दिङ्नाग अने धर्मकीर्त्तिना मध्यकालमां रचेलो छे एम अनुमान कराय छे ।
कणाद. आ ऋषि वैशेषिक दर्शनना प्रवर्तक छे आ दर्शन घणु प्राचीन छे नित्य द्रव्योमा 'विशेष' नामना पदार्थपर घणो भार मूकवामां आव्यो छे तेना ऊपरथी ए दर्शन- 'वैशेषिक' एवं नाम पड्युं छे। आ दर्शनना रचनार माटे 'कणाद' 'कणभुक्' 'कणभक्ष' अने 'औलुक्य' एवी संज्ञा पण वापरवामां आवे छे । आमां मुख्य प्रतिपाद्य पदार्थ द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय अने अभाव छ । जेने अनेक दर्शनकारो एक या बीजारूपथी स्वीकारे छे आ वैशेषिक सूत्रो अतिप्राचीन होवाथी पाठभेद होवानो बहु संभव रहे छे माटे नयचक्रमा आवता पाठो साथे मुद्रित वैशेषिकसूत्रनो पाठभेद देखाय ए स्वाभाविक छ ।
१ मया विगृह्मैवात्र वादः सैद्धार्थीयमतावलम्बिनं (महावीरमतावलम्बिनं ) त्वामेवोद्दिश्य इत्यादि ग्रन्थथी जैनमतनो विचार कर्यो छ।
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