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धर्मकीर्तिना समसामयिक गोविन्दचन्दना पिता विमलचन्द्रसाथे मालवदेशीय राजवंशमां थयेला कोई भर्तृहरिनी भगिनीनुं लग्न थयुं हतुं एवो केटलाक संशोधकोनो मत छे पण आ भर्तृहरि वाक्यपदीना कर्ताथी भिन्न छ । शब्दब्रह्मसिद्धान्तना प्रतिष्ठापक भर्तृहरिने तो दिङ्गाग पण याद करे छे । माटे ईत्सिंगनो आधार लइने भर्तृहरि, धर्मकीर्ति, अने कुमारिल आदिनो समयनिर्णय करवो ए ऐतिहासिकोनी भूल छे ।
कटन्दी. नयचक्रकार नयचक्रमां वैशेषिकमतना निरूपण अने निराकरणना प्रसङ्गे 'कटन्दी' नामक ग्रन्थनो उल्लेख करे छे । आ ग्रन्थ कणादसूत्रना ऊपर भाष्य या टीकारूप हशे ! ए ग्रन्थना कर्त्तानुं नाम आ ग्रन्थथी जाणवामां आवतुं नथी केमके ग्रन्थकार केवळ 'कटन्दीकार' आवो सामान्य उल्लेख करे छे । कटन्दीकार वैशेषिक पण्डित हशे! हालमा उपलभ्यमान वैशेषिक-ग्रन्थोमां आ भाष्य के टीकानी साक्षी के एना ऊपर टीका-टिप्पणो के उद्धरणों कयाँ होय तेम देखातुं नथी । पण 'अनर्धराघवनाटक' ना पांचमा अङ्कमां कटन्दीनो वैशेषिक-पण्डित तरीके रावणना नामनो उल्लेख छे–“रावणः-भो भो लक्ष्मण! वैशेषिककटन्दीपण्डितो जगद्विजयमानः पर्यटामि कासौ राम: ? तेन सह विवदिष्ये" आ पंक्तिथी रावण कटन्दीनो कर्ता छे एम स्पष्ट थाय छे । 'रुचिपति उपाध्याये' कटन्दीनो रावणभाष्यतरीके उल्लेख कर्यो छे अने आ ज ठेकाणे 'न्यायकन्दली'नो पुरावो पण टांक्यो छे । आ रावणने ज वेदभाष्यलखनार 'सायणाचार्ये' पोताना भाष्यमां स्मरण कर्यो हशे! 'वैदिकसाहित्य' (पृ. ३७) मां बलदेव उपाध्याय लखे छे के 'रावणे ऋग्वेद ऊपर भाष्य पण लख्यु छे अने साथे साथे पोतानो पदपाठ पण प्रस्तुत कर्यो छे' । वाक्यपदीयटीकामां टीकाकार पुण्यराजे 'पर्वतादागमं लब्ध्वा' आ कारिकानी व्याख्यामां 'पर्वतात् त्रिकूटैकदेशवर्तित्रिलिङ्गैकदेशादिति, तत्र ह्युपलतले रावणविरचितो मूलभूतो व्याकरणागमस्तिष्ठति' आ उल्लेखमां आवतो पण रावण कटन्दीकार ज हशे! तथा वेदान्त शङ्करभाष्यनी रत्नप्रभानामनी टीकामां लख्युं छे के 'रावणप्रणीते भाष्ये दृश्यते इति चिरन्तनवैशेषिकदृष्टया वेदं भाष्यम्' आम वैशेषिक-मतमां रावणप्रणीतभाष्य नी सत्ता सिद्ध थाय छे । आ बधा रावण एक ज होय तो आनो समय पतञ्जलिना पछीनो अने वसुरातथी पूर्वनो सिद्ध थाय छे ।
१९६९. वि० सं० मां ब्राके इत्युपा गंगाधरभट्टना पुत्र महादेव शर्माए संशोधित वैशेषिकदर्शननी प्रस्तावनामां लख्युं छे के ‘पदार्थसङ्ग्रहाभिध-प्रशस्तदेवप्रणीत-वैशेषिक सूत्रभाष्यस्य साक्षात् परम्परया वा व्याख्यारूपैका, द्वितीया तु रावणप्रणीतभाष्यं भारद्वाजीया वृत्तिरिति द्वे प्राचीनतरे रावणभाष्यस्य सद्भावः किरणावलीभास्करकृतनाममात्रनिर्देशादवगम्यते' आथी अनुमान थाय छे के आ भारद्वाजीया वृत्ति ज वाक्यग्रन्थ हशे अने भाष्यग्रन्थ रावणकृत कटन्दी छ । आ बन्ने ऊपर प्रशस्तमतिनी टीका छे टीकार्नु नाम शुं हशे ए अज्ञात छ । आ प्रशस्तमति नयचक्रकार-मल्लवादिसूरिजीना पूर्ववर्ती छे । आ वात तो निश्चित ज छे । परन्तु केटला प्राचीन छे ए अनिश्चित छ । पदार्थधर्मसहना कर्ता प्रशस्तदेव एमना जेटला प्राचीन नथी; एने ज प्रशस्तपाद पण कहेवामां आवे छे । आ भारद्वाजवृत्तिनो ज शङ्करमिश्र पोताना वैशेषिकसूत्रोपस्कारमा उल्लेख
__. १ जुओ:-वाराणसीय चौखम्बा संस्कृतसीरिज मुद्रित न्यायबिन्दुनी प्रस्तावना।
न० प्र०३
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