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एक बार सुवर्णबाहु अपनी अश्वशाला (घुड़साल) का निरीक्षण कर रहा था। एक अत्यन्त चपल सुन्दर सफेद घोड़े को देखकर राजा ने पूछा- "यह घोड़ा दीखने में इतना सुन्दर है, क्या सवारी में भी योग्य है ?"
| सैनिक - "महाराज ! यह बहुत ही तीव्र गति वाला पवनवेगी अश्व है।" राजा - "अच्छा! तब तो हम आज इसी पर सवारी करेंगे।”
राजा के आदेश से तुरन्त घोड़े को सजाकर उपस्थित किया गया। राजा घोड़े पर सवार हुआ। उसके पीछे अंगरक्षक घुड़सवार सैनिक भी तैयार हो गये। राजा ज्यों ही घोड़े पर चढ़ा तो घोड़ा हवा में तैरने लगा। सैनिक सब पीछे रह गये। घोड़ा दौड़ता-दौड़ता एक गहन वन में चला गया। राजा ने लगाम खींची तो घोड़ा और तेज दौड़ने लगा। ज्यों-ज्यों लगाम खींचता घोड़ा तेज-तेज दौड़ता चला गया। राजा पसीना-पसीना हो गया । प्यास से गला सूखने लगा। थक-हारकर राजा ने घोड़े की लगाम ढीली छोड़कर कूदने की तैयारी की तभी घोड़ा रुक गया।
राजा - "अरे ! मुझे तो पता ही नहीं था, यह घोड़ा वक्र शिक्षित था। राजा उतरा। सामने ही एक सरोवर दीखा। राजा सरोवर के किनारे आकर एक वट वृक्ष की छाया में
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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