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सुस्ताने लगा। फिर सरोवर में स्नान किया और शीतल जल पीकर विश्राम करने लगा। उसे नींद लग गई। कुछ देर बाद नींद खुली। राजा उठा और आसपास भोजन की तलाश करने लगा। सामने एक सुन्दर तपोवन दिखाई दिया।
तपोवन के हरे-भरे वृक्षों के झुंड और उनमें सुन्दर हिरण शावकों को किलोलें करते देखकर राजा सोचता है- 'यहाँ अवश्य ऋषि रहते होंगे। चलूँ कन्द-फल मिले तो खाकर भूख शांत करूँ ।' राजा वृक्षों के झुंड के पास आया तो एक ऋषि कन्या दिखाई दी। राजा की नजर कन्या पर पड़ती है-'यह कौन है ? कोई देव कन्या है, अप्सरा या उर्वशी है।"
वृक्ष की ओट लेकर राजा खड़ा होकर उसे देखता है- 'ऋषि कन्या ! इतनी तेजस्वी, इतनी सुन्दर । लगता है सृष्टि का समूचा सौन्दर्य इसी में समा गया है।'
तभी एक भँवरा उड़ता - उड़ता कन्या के मुँह पर बैठ गया । कन्या जोर से चीखी-"अरे बचाओ ! बचाओ !"
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नंदा नाम की सहेली दौड़कर आती है- "पद्मा ! पद्मा ! क्या हुआ ?" पद्मा ने उड़ते भँवरे की तरफ इशारा किया - "इससे बचाओ ! यह डंक मार देगा।”
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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