________________
[ ३७ ] (१) अनित्य भावना, (२) अशरणभावना, (३) संसार भावना (४) एकत्व भावना, (६) अशुचि भावना, (७) आश्रव भावना, (८) संवर भावना, (९) निर्जरा भावना, (१०) लोक भावना, (११) बोधिदुर्लभ भावना और (१२) धर्म भावना।
अस्तु मिथ्यात्वी मोक्ष की अभिलाषा रखता हुआ उपर्युक्त बारह भावना का चिन्तन करे । भावनाएं मनुष्य के जीवन पर फैसा असर करती है यह बात भरत चक्रवर्ती, अनाथी, नमि राजर्षि आदि महापुरुषों के जीवन का अध्ययन करने से अच्छी प्रकार मालूम हो जाता है। भरत चक्रवर्ती ने अनित्य भावना के द्वारा आरिसा भवन में केवल ज्ञान उत्पन्न किया। मिध्यात्वो भावनाओं के द्वारा बहिरात्मा से अन्तरात्मा बन सकता है। चित्त की शुद्धि के लिए एवं आध्यात्मिक विकास की ओर उन्मुख करने के लिए भावनाएं परम सहायक सिद्ध हुई है। मोक्षाभिलाषी आत्मा इसका बार-बार चिन्तन करते हैं अतः इसका नाम भावना है।
धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं, यथा
धम्मस्स णं माणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पन्नत्ताओ, तंजहाएगाणुप्पेहा, अणिच्चाणुप्पेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा।
-ठाणांग ४ । उ १ । सू ६८ अर्थात् धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं भावनाएं हैं,--एकत्व भावना, अनित्यत्व भावना, अशरण भावना, संसार भावना ।
बारह भावनाओं में भी इन चारों भावनाओं का उल्लेख है। मिथ्यात्वी इन चारों भावनाओं के द्वारा धर्मध्यान में अग्रसर हो।
राजवार्तिक में अकलंकदेव ने कहा हैअनुप्रेक्षा हि भावयन् उत्तमक्षमादींश्च परिपालयति ।
- राजवार्तिक अ६ । सू ७ । पृ० ६०७ अर्थात् अनुप्रेक्षाओं को भावना करनेवाला उत्तम क्षमादि धर्मों का पालन करता है।
अतः सिद्ध हो जाता है कि मिथ्यात्वी के अनित्यादि बारह ही भावना हो सकती है।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org