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________________ [ २८ ] बिम्ब भाव मात्र को धारण करती कुछ एक विशुद्ध होती है, अतः उत्सर्पण करती है, नीललेश्या को प्राप्त होती है । स्रुतः सातवीं नारकी में भी भावपरावृत्ति की अपेक्षा छहों लेश्याएँ होती । वे मिध्यादृष्टि नारकी तेजो आदि शुभलेश्या से सम्यक्त्व को प्राप्त करते हैं। पंचसंग्रह के टीकाकार आचार्य मलयगिरि से कहा है "सम्यक्त्व देशविरति सर्वविरतीनां प्रतिपत्तिकालेषु त्रयमेव, तदुत्तरकालं तु सर्वा अपिलेश्याः परावत्त' तेऽपीति । शुभलेश्या पंचसंग्रह भाग १ | ११ |टीका अर्थात् सम्यक्त्व, देशविरति तथा सर्वविरति की उपलब्धि के समय लेश्या A तीन शुभ होती है, उत्तरवर्ती काल में छहों लेश्या मिल सकती । इससे और भी पुष्टि हो जाती है कि सातवीं नारकी में भी सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय लेश्यायें शुभ होती है । जीवाभिगम सूत्र में कहा है से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पन्नत्ता, तंजहा - रमण पभाबुढविनेरइया जाव असत्तमपुढविनेरइया xxx तिविहा दिट्ठी । xxx - जीवाभिगम प्रतिपत्ति १ । सू । ३२ अर्थात् रत्नप्रभानारकी यावत सातवीं नारकी में तीनों दृष्टि होती हैसम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग मिध्यादृष्टि । Jain Education International 2010_03 षट्खंडागमके टीकाकार आचार्य वीरसीन ने और भी कहा है-"संपद्दिमिच्छाइट्ठीणं ओघालावे भण्णभाणे अत्थि एयंगुणद्वाणं xxx दव्व-भावेहिं छलेस्साओ । xxx । - षट्० सं० १, १ । पृ० ४२३-२४ । पु २ अर्थात् मिथ्यादृष्टि जीवों के ~ ओघालाप कहने पर - द्रव्य और भाव की पर्याप्त तथा अपर्याप्त—दोनों अवस्थाओं में अपेक्षा छहीं लेश्याएं होती हैं | मिध्यादृष्टि के छहों भावलेक्याएँ होती हैं, अतः मिध्यादृष्टि मनुष्य में भी द्रव्यतः तथा भावतः छहों लेश्याएं होती हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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