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[ १६ ] . महापरिग्रहो होकर यावत नरक में जाता है । वहाँ से निकल कर जन्म-से-जन्म, मृत्यु-से-मृत्यु को, एक दुःख से निकल कर दूसरे दुःख को प्राप्त करता है । यद्यपि वह नरक में उत्तरगामी नेरयिक और शुक्लपाक्षिक होता है। वह देशोन अर्धपुगदल परावर्तन के बाद अवश्य मोक्ष को प्रात करता है और जन्मान्तर में सुलभ बोधि होता है। __ यद्यपि अज्ञानवादी तथा विनयवादी भी-मिथ्यात्वी होते है ।' अज्ञानवादी कहते हैं कि जोवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने वाला कोई नहीं है। न उनके जानने से कुछ सिद्ध होता है । इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम ।
इसलिए अज्ञान ही श्रेय रूप है। इसलिए वे मिथ्यादृष्टि है और उनका कथन स्ववचन बाधित है । क्योंकि अज्ञान ही श्रेय है यह बात भी वे बिना ज्ञान के कैसे जान सकते हैं ? और बिना ज्ञान के वे अपने मत का समर्थन भी कैसे कर सकते हैं ? इस प्रकार अज्ञान की श्रेयता बताते हुए उन्हें ज्ञान का आश्रय लेना ही पड़ता है। ___ विनयवादी कहते हैं कि स्वर्ग, अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से ही होती है। इसलिए विनय ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार विनय को प्रधान रूप से मानने वाले विनयवादी कहलाते हैं। २
केवल विनय से हो स्वर्ग, मोक्ष पाने की इच्छा रखने वाले विनयवादी मिथ्यादृष्टि है। क्योंकि ज्ञान और क्रिया दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान या क्रिया से नहीं। ज्ञान को छोड़कर एकांत रूप से केवल क्रिया के एक अंग का आश्रय लेने से वे सत्य मार्ग से दूर हैं ।३.
इस प्रकार मिथ्यादृष्टि कियावादी भी होते है, अक्रियावादी भी होते हैं लेकिन सम्यगदृष्टि अपेक्षा भेद से क्रियावादी हो सकते हैं शेष के तीन वादी नहीं होते ।
(१) सयगडांग श्रु १ । १२ (२) आचारांग श्रु १ । अ१। उ १।सू३ । टीका (३) सूयगडांग श्रु १ । म १२ । टीका
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