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________________ [ १७ ] णस्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेस्रो, णोसुचिण्णाकम्मा सुचिण्णाफलाभवंति, णो दुचिण्णा कम्मादुचिण्णा फला भवंति, अफलेकल्लाणपावए, णो पञ्चायंति जीवा, णथिए णिरए, णत्थि सिद्धि, से एवंवाई, एवंपण्णे, एवं दिट्ठी, एवं छंदरागमइणिविट्टे यावि भवइ । -दशाश्रुतस्कंध अ६ । सू २ अर्थात् अक्रियावादी क्रिया के अभाव का कथन करने वाला-उत्पत्ति के बाद पदार्थ के विनाशशील होने के कारण वह प्रतिक्षण अनवस्थायी बदलता रहता है अत: उसकी क्रिया नहीं हो सकती। अथवा जीव आदि पदार्थ नहीं हैन माता है, न पिता है, न परलोक है, न इहलोक है आदि । वह अक्रियावादी इस प्रकार का बोलने वाला, इस प्रकार की बुद्धिवाला, इस प्रकार की दष्टि-विचार वाला और इसी प्रकार के अभिप्राय में राग में, और इसी प्रकार को मति में वह हठाग्रही होता है। अक्रियावादी जीव केवल मिथ्यादृष्टि ही होते हैं, सम्यग्दृष्टि नहीं। इसके विपरीत क्रियावादी जीव मिथ्यादृष्टि भी होते हैं, सभ्यगदष्टि भी । कहा हैसम्मदिट्ठी किरियावाई मिच्छा य सेसगावाई। -सूय० श्रु १ । अ १२ । गा १ । नि गा १२१ ___ अर्थात् क्रियावादी के दो भेद है-मिथ्यादृष्टि क्रियावादी तथा सभ्यगदृष्टि क्रियावादी । जो जीवादि नव पदार्थों के अस्तित्व में विश्वास करता है तथा उनके नित्यानित्य एवं स्व-पर तथा काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर, आत्मा आदि कारणों को सकल भाव से तथा सापेक्ष भाव से अनेकांत दृष्टि से मानता है वह सम्यगदृष्टि क्रियावादी है। इसके विपरीत मिथ्यादृष्टि क्रियावादीएकांत भाव से मानता है-कहा है जीवादिपदार्थसद्भावोऽस्त्येवेत्येवं सावधारणक्रियाभ्युपगमो येषां ते अस्तीति क्रियावादिनस्ते चैवं वादित्वान्मिध्यादृष्टयः xxx स तत्रा १-(क) भगवती स ३० । उ १ (ख) सूय० १ १ । अ १२ । गा १ । टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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