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( १६ ) प्रज्ञापना सूत्र में मिध्यादृष्टि को जीव का परिणाम कहा हे अतः मिथ्यादृष्टि जीव है।' आगम में कहीं-कहीं दृष्टि के स्थान पर दर्शन का भी व्यवहार हुआ है-जैसे कि कहा है
दसणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते ? गोयमा! तिविहे पन्नत्त, तंजहा-सम्मदंसणपरिणामे, मिच्छादसणपरिणामे, मिच्छासम्मदसणपरिणामे।
-प्रज्ञापना पद १३ । सू ६३५ अर्थात् दर्शन परिणाम के तीन भेद हैं-यथा सम्यगदर्शन परिणाम, मिथ्यादर्शन परिणाम और सम्ममिथ्यादर्शन परिणाम । जोव के गति आदि दस जीव परिणामों में एक जीव परिणाम-दर्शन परिणाम है । अतः मिथ्यादर्शन परिणाम-मिथ्यादृष्टि जीव का एक परिणाम विशेष है।
प्रज्ञापया पद १६ में भी मिथ्यादृष्टि को जीव कहा है
जीवा गं भंते ! किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा! जीवा सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि।
-प्रशापना पद १९ । सू १३६६ अर्थात् जीव सम्यगदृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं तथा सम्यगमिथ्यादृष्टि भी होते हैं।
६ : मिथ्यादृष्टि और क्रियावाद-अक्रियावाद मिथ्यादृष्टि जीव क्रियावादी भी होते हैं और अक्रियावादी भी। जीव आदि पदार्थ नहीं है-इस प्रकार बोलने वाला अक्रियावादी है ।
___ 'अकिरियावाई याविभवइ नाहियवाई, नाहियपन्ने, नाहियदिडी, णो सम्मावाई, णोणितियावाई, णसंतिपरलोगवाई, णस्थि इहलोए, णत्थि परलोए, णत्थि माया, णस्थिपिया, णत्थि अरिहंता, णत्थि चक्क
वट्टी, णत्थि बलदेवा, णत्थि वासुदेवा, णस्थिणिरया, णत्थि णेरड्या, ... १-ठाणांग सूत्र ठाणा १.
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