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( १५ ) के कारण कभी भी सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं कर सकेंगे ; अनादि-सांत स्वभाव के कारण भवसिद्धिक जीव सम्यक्त्व को प्राप्त कर सकेंगे तथा सादि-सांत स्वभाव के कारण प्रतिपाती सम्यक्त्वी (जो पहले सम्यक्त्व को प्राप्त कर, फिर मिथ्यात्वी हो गये हैं। ) जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त के बाद उत्कृष्ट देशोन अद्ध पुद्गलपरावर्तन के बाद नियमतः सम्यक्त्व को प्राप्त कर सकेंगे अर्थात सादिसांतमिथ्यात्वीप्रतिपाती सम्यग्दृष्टि जीव उत्कृष्टकाल की अपेक्षा-देशोन अर्द्ध पुद्गलपरावर्तन के बाद सम्यकत्व को प्राप्त कर, चारित्र ग्रहण कर, सर्व कर्मो का क्षय कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।
५ : मिथ्यादृष्टि-जीव-जीवपरिणाम है मिथ्यादृष्टि- जीव का एक परिणाम विशेष है स्थानांग सूत्र में कहा है
तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, संजहा-सम्मट्ठिी मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी।
-ठाण० स्था ३ । उ २ । सू ३१८ अर्थात् सब जीव तीन प्रकार कहे गये हैं-यथा-सम्यगदृष्टि, मिथ्याडष्टि और मिश्रदृष्टि । आगम में सर्व जीवों के निम्नलिखित आठ विभाग भी किये गये हैं, ___ अहवा --अठ्ठविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तंजहा -आभिणिवोहियनाणीजाव केवलनाणी, मतिअन्नाणी, सूयअन्नाणी विभंगणाणी ।
-ठाण. स्था ८ । सू १०६ अर्थात् सर्व जीव के आठ भेद किये जा सकते हैंयथा, आभिनिबोधक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि ज्ञानी, मनःपर्यव ज्ञानी, केवल ज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंग ज्ञानी । ___ अस्तु आभिनिबोधिक ज्ञानो यावत् केवलज्ञानी जीव नियमतः सम्यग्दृष्टि होते हैं तथा मतिअज्ञानी यावत् विभंग ज्ञानी-मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यगमिथ्याडष्टि ।
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