SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म नहीं रुचता है । जो जोवादि नौ पदार्थो का अश्रद्धान है वह मिथ्यात्त्वहैसांशयिक, अभिग्रहित और अनभिग्रहित-इस प्रकार वह तीन प्रकार का है जीवादि नौ पदार्थ है या नहीं इत्यादि रूप से जिसका श्रद्धान दोलायमान हो रहा है, वह सांशयिक मिथ्यादृष्टि जीव है। जो कुमार्गियों के द्वारा उपदेशित पदार्थो को यथार्थ मानकर उसकी उस रूप में श्रद्धा करता है वह अभिग्रहीत मिथ्यादृष्टि जीव है और जो उपदेश के बिना ही विपरीत अर्थ की श्रद्धान करता आ रहा है वह अनभिग्रहीत मिथ्यादृष्टि जीव है। स्थानांग सूत्र में कहा हैतिविधे मिच्छत्ते पन्नत्ते, तंजहा-अकिरिता, अविणते, अण्णाणे । -ठाण. स्था ३। उ ३।सूत्र ४०३ अर्थात् मिथ्यात्त्व के तीन भेद होते हैं-यथा (१) अक्रिया-जैसे अशील को दुःशील कहा जाता है उसी प्रकार अक्रिया अर्थात् मिथ्यात्व से हनित मोक्षसाधक अनुष्ठान को दुष्टक्रिया कहा जाता है । (२) मिथ्यादृष्टि के ज्ञान को अज्ञान कहते हैं । देशादि ज्ञान भी मिथ्यात्व विशिष्ट अज्ञान ही है। (३) अक्रिया की तरह मिथ्यादृष्टि के विनय को भी अविनय कहते हैं ठाणांग के टीकाकर ने कहा है कि "विशिष्टनय को विनय कहते हैं अर्थात् प्रतिपत्ति-भक्तिविशेष । इसके विपरीत अविनय जानना चाहिए। आराध्य और आराध्य सम्मत रूप से इतर-लक्षणविशेष अपेक्षा रहितपन-अनियत विषय से अविनय जानना चाहिए।' (१) ततोऽत्र मिथ्यात्वं क्रियादीनामसम्यग्रूपता मिथ्यादर्शनानाभोगादिजनितो विपर्यासो दुष्टत्वमशोभनत्वमिति भावः । 'अकिरिय' त्ति न बिहदुःशब्दार्थों यथा अशीला दुःशीलेत्यर्थः, ततश्चाक्रिया - दुष्टाक्रिया मिथ्यात्वाद्य पहतस्या मोक्षसाधकमनुष्ठानं, यथा--- मिथ्यादृष्टेमिप्यज्ञानमिति, एवमविनयोऽपि, अज्ञानम्-असम्यग्ज्ञान मिति । xxx अथवा देशादिज्ञानमपि मिथ्यात्वविशिष्टमज्ञानमेवेति । -ठाण० स्था ३ । उ०३ । सू ४०३ । टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy