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________________ ( ७ ) हैं । अथवा मिथ्वा शब्द का अर्थ वितथ और दृष्टि शब्द का अर्थ रूचि, श्रद्धा या प्रत्यय है। इसलिये जिन जीवों की रूचि असत्य में होती है उन्हें मिथ्यादृष्टि कहते है ।' सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमीचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार (जीवकांड) में कहा है "मिच्छत्त वेयंतो जीवो विवरीय-दसणो होइ । ण य धम्मं रोचेदिहु महुरं खुरसंजहाजरिदो ॥१०६।। तं मिच्छत्तं जहमसद्दहणं तच्चाण होइ अत्थाणं । संसइदमभिग्गहियं अणभिग्गहिदंतितंतिविहं ॥१०॥ अर्थात् मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से उत्पन्न होने वाले मिथ्यात्व भाव का अनुभव करने वाला जीव विपरीत श्रद्धा वाला होता है। जिस प्रकार पित्तज्वर से युक्त जीव को मधुरस भी अच्छा मालूम नहीं होता है उसी प्रकार उसे यथार्थ धर्म अच्छा मालूम नहीं देता है। जो मिथ्यात्वकम के उदय से तत्त्वार्थ के विषय में अश्रद्धान उत्पन्न होता है २ अथवा विपरीत श्रद्धान होता है उसको मिथ्यात्व कहते हैं। उसके संशयित, अमिगृहीत और अनभिगृहीत ये तीन भेद हैं। विपरीत अभिनिदेश दो प्रकार का होता है अनंतानुबंधीजनित और मिथ्यात्व जनित । मिथ्यात्वी में उक्त दोनों प्रकार के विपरीताभिनिवेश पाया जाता है। मिथ्यात्वी का प्रथम गुणस्थान है । मिथ्या–विपरीत दर्शनको मिथ्यादर्शन कहते हैं। मिथ्यात्वकर्म के उदय से आप्त, आगम और पदार्थों में अश्रद्धान उत्पन्न होती है। तत्त्वत:-तत्त्व अथवा तत्त्वांश पर मिथ्या श्रद्धावान को मिथ्यादृष्टि कहते हैं जीव विपरीत दृष्टिसे मिथ्यादृष्टि होता है किन्तु उसमें जो अविपरीत हष्टि होती है, उसकी अपेक्षा से नहीं। जैसे कि मान लीजिये कोई मिथ्यात्वी नव बोलों १-अथवा मिथ्या वितथं, तत्र दृष्टिः रूचिः श्रद्धा प्रत्ययो येषां ते मिथ्यादृष्टयः -षड खं० १,१ । सू ६ । टीका । पु. १ । पु० १६२ २--मिथ्यात्वं तत्त्वार्थाश्रद्धानलक्षणम्---प्रशमरतिप्रकरण श्लो ५६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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