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अस्तु सिबामण ऋषि के लिए बालतपस्वी का व्यवहार हुआ है। वह सम्भवस्वी नहीं षां, मिध्यात्वी था ।
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(२) तामली तापस के लिए भी बालतपस्वी का व्यवहार हुआ है। कहा हैतरणं तामली मोरिययुक्त तेणं ओरालेणं, विपुलेणं, पथन्तेणं, पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं सुक्के, लुक्खे जाव धमणिसंतए जाए या दि होत्था । x x x |
- भग० श ३ उ ११ स-३५
अर्थात् वह मौर्यपुत्र बालतपस्वी उस उदार, विपुल प्रदत और प्रगृहीत बालतप द्वारा शुष्क बन गया । यावत् इतना दुबला हो गया कि उसकी नयाँ बाहर दिखाई देने लग गयी थी चूंकी बाल तपस्वी तामली तापस साठ हजार वर्ष तक बेले- बेले की तपस्या की थी ।
Shanti fभक्षु ने मिध्यात्वी री निर्णय री चौपई ढाल २ में कहा हैतामली बालतपसी तेहनीं रे, करणी तण करो निस्तार रे । ए भगोती सूतर रे खतकज तीसरें रे, पेंहला उद्देखा में विस्तार रे । - भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर पृ० २६१
अर्थात् बालतपस्वी तामली की करणों का विस्तार भगवतो सूत्र में किया गया है ।
(३) पुरण तापस के लिए भी बालतपस्वी काव्यवहार हुआ है ; जैसा कि कहा है
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तएण से पूरणे बालतवस्सी तेणं ओरालेणं विउलेणं, पयन्त्तर्ण पग्गहिएणं, बालतवोकम्मेणं तं चैव जाव - बेभेलस्य सण्णिवेसरस मज्मashणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता पादुगकुडियमाईयं उबगरणं, astysयं दारुमयं पडिग्गहगं एगंते, एडेइ, एडेत्ता बेभेलरस सण्णिवेस्स दाहिणपुरत्थिमे दिखीमागे अद्धणियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेइणा-भूषणाभूसिए, भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं णिवण्णे ।
- भगवती श ३। उ २ प्र० २१ सूत्र १०३, १०४
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