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[ 23 ] विषय
पृष्ठांक चतुर्थ अध्याय-मिथ्यात्वी के क्षयोपशम, निर्जरा विशेष
८१.१११ (१) मिथ्यात्वी के कर्मों के क्षयोपशम का सद्भाव पृ० ८१ (२) मिथ्यात्वी और निर्जरा पृ० ८६ (३) मिथ्यात्वी और बाश्रव पृ. ६६ (४) मिथ्यात्वी और पुण्य पृ० ६८ (५) मिथ्यावी और आयुष्य का बंधन
पृ० १०४ पंचम अध्याय-मिथ्यात्वी की क्रिया-भाव विशेष
११२-१४२ (१) मिथ्यात्वो और क्रिया-कर्म बन्धनिबंधनभूतासअनुष्ठान क्रिया पृ० ११२ (२) मिथ्यात्वी और भाव पृ० ११६ (३) मिथ्यात्वी और लग्धि पृ० १२२ (४) मिथ्यात्वी और भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक पृ० १२८ (५) मिथ्यात्वी और कृष्णपाक्षिक-शुक्लपाक्षिक पृ० १३२ (६) मिथ्यात्वी और परीत्त संसारी-अपरीत्त संसारी पृ० १३४ (७) मिथ्यात्वी और सुलभबोधि
और दुर्लभबोधि पृ० १३७ षष्ठम अध्याय --मिथ्यात्वी का ज्ञान-दर्शन विशेष
१४३-१८३ (१) मिथ्यात्वी और ज्ञान-दर्शन पृ० १४३ (२) मिथ्यात्वी के कर्मों के क्षयोपशम से ज्ञानोत्पत्ति पृ० १५४ (३) मिथ्यात्वी के क्षयोपशम से विभिन्न गुणों की
उपलब्धि पृ०१६८ सप्तम अध्याय-मिथ्यात्वी के व्रत विशेष
१८४.२२१ (१) मिथ्यात्वी के संघर नहीं होता पृ० १८४ (२) मिथ्यात्वी को सुप्रती कहा है पृ० १९७ (३) मिथ्यात्वी
और अणुव्रत पृ० २०० (४) मिथ्यात्वी और सामायिक पृ० २१७
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