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[ २२८ ] से जहा नामए-केइ पुरिसे कलम-मसूर-तिलमुग्गमासनिष्फावकुलत्थ-आलिसिंदग-जवजवाएवमाइएहिं अयत्ते फूरे मिच्छाद पजइ। एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तर-वट्टग-लावग-कवोयकविजल-मिय-महिस-बराहगाहगोह कुम्मसरीसिवाइएहिं अयत्ते कूरे मिच्छादण्डं पजइ।
-दशाश्रुतस्कंध अ६ । ८ जैसे कोई पुरुष कलम, मसूर, तिल, मूग, उड़द, निरुपाय-बालेल, कुलस्थ, आलिसिंदक,-चवला, जवजव-जवार आदि धान्य को अयत्नशील हो करता से उपमर्दन करता हुआ मिथ्यादंड का प्रयोग करता है इसी प्रकार (महामिण्यात्वी) नास्तिक वादी तित्तिर, बटेर, लावक, कबूतर, कुरज, मृग, महिष, शूकर, मकर, गोह, कच्छप, सर्प आदि निरपराध प्राणियों को अयत्नशील होकर क्रूरता से अर्थात् इनके वध में कोई पाप नहीं है—इस बुद्धि से हिंसा करता है। छोटे से अपराध के होने पर वह अपने आप हो उनको बड़ा भारी दंड देता है । अपराधियों का खाना-पीना बंद कर दो आदि । कहा है
एवामेव ते xxx संचिणिता बहुई पावाई कम्माई ओसण्णं संभारकडेणं कम्मुण्णा, से जहा नामए-अयगोलेइ वा सेलगोलेइ वा उदयंसि पक्खित्त समाणे उदगतलमइचइत्ता अहे धरणी तलपट्ठाणे भवइ, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए वज्जबहुले धूणबहुले पंकबहुले वेरबहुले दंभनियडिसाइबहुले आसायणबहुले अजसबहुले बहुले उस्सण्ण तसपाणघाई कालं मासे कालं किच्चा धरणितलमइवइत्ता अहेनरगधरणितलपइटाणे भवइ ।
-दशाश्रुतस्कंध प ६।१४ अर्थात् वह महामिथ्यात्वी-नास्तिकवादी वैरभावों का संचय कर अनेक पापों का उपार्जन करते हुए प्रायः भारी कर्मों की प्रेरणा से- जैसे लोहे का गोला अथवा पत्थर का गोला जल में फेंका हुआ जल का अतिक्रमण करके नीचे भूमि के तल पर जा बैठता है उसी प्रकार पापी पुरुष-महाघोर मिथ्यात्वी अतिपापिष्ठ पापों से भरा हुआ अथवा वज्र जैसे कर्मों से भारी क्लेशकारी कर्मों
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