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। २२७ । अधर्मी, अधर्म की प्ररूपणा करने वाला, अधर्म में ही अनुराग रखने वाला, अधर्म को देखने वाला, अधर्म से जीने वाला, अधर्म से खुश होने वाला, अधर्म स्वभाव वाला और वह केवल अधर्म से ही बीविका संपादन करता हुआ विचरता है। आगे कहा है
"हण छिन्द, भिंद, विकत्तए, लोहिमपाणी, चंडो, रुद्दो, खद्दो असमिक्खियकारी, साहसिओ, उक्कंचणे, वंचणे, माई, नियडी, कूडमाई, साइसंपओगबहुले, दुस्सीले दुप्परिचये, दुच्चरिए, दुरणुणए, दुवए, दुप्पडियाणंदे, निस्सीले, निव्वए, निग्गुणे, निम्मेरे, निप्पक्खाणपोसहोववासे असाहू।"
-~-दशाश्रुतस्कंध अ० ६। सू ४ अर्थात् वह मिथ्यात्वी कहता है-जीवों को मारो, छेदन करो, भेदन करो। स्वयं जीवों को काटने वाला होता है, उसके हाथ रुधिर से लित रहते हैं, प्रचंड क्रोधी, प्राणियों को भय उपजाने वाला, जीवों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला, बिना विचारे हिंसा करनेवाला, साहसिक, किसी को शूली फांसी पर चढ़ाने के लिए उत्कण्ठित अथवा घूस लेनेवाला, वंचना करनेवाला ठग, मायावी, गूढ मायावी, अनेक प्रकार की क्रिया से दूसरों को ठगने वाला, दूसरों को ठगने के लिए मेंहगा द्रव्य के साथ सस्ते द्रव्य का संयोग करनेवाला, खराब स्वभाव बाला, बहुत समय तक उपकार किया हो तो भी थोड़ी देर में कृतघ्नता करने वाला, दुष्ट आचरण करने वाला, दुःख से काबू में आने वाला, दुष्ट प्रतिज्ञा वाला, दूसरों के दुःख में आनन्द मनाने वाला, अथवा उपकारी का उपकार न मानकर उलटा उसका दोष निकालने वाला, ब्रह्मचर्य की मर्यादा रहित, नियम रहित, दर्शन, चारित्र आदि गुणों से रहित अथवा क्षान्ति आदि गुणों से रहित, धर्म नियम को मर्यादा से रहित, सर्व पापमयी प्रवृत्ति करने वाला होता है। । प्रायः उसके अशुभ परिणाम रहते हैं और अशुभ परिणाम से बन्धे हुए कर्मों का भविष्य में कैसा कहवा फल भोगना पड़ेगा-इस बात का विचार नहीं करने वाला होता है । मस्तक अथवा अंगुली आदि को हिलाकर "अरे मूर्ख ! तुझे पता लगेगा, ऐसे तिरस्कार से बोलने वाला खंग आदि से बात करने काला भूख, प्यास आदि से दुःख देने वाला होता है।" कहा है
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