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________________ [ २१० । तिणसू निरवद करणी मिथ्याती तणी रे लाल । तिणनें असुध कहें ताय रे ॥३।। -मिथ्यातो री निर्णय री ढाल ३ अर्थात् मिथ्यात्वी की सावध करणी आज्ञा के बाहर है तथा वह अशुद्ध पराक्रम है, परन्तु विवेक-विकल जीव मिथ्यात्वी की निरवद्य करणी को भी अशुद्ध कहते हैं । आगे देखिए, आचार्य भिक्षु ने क्या कहा है- . मिथ्याती निरवद करणी करता थकां रे । समकत पाय पोहता निरवांण रे॥ तिण करणी ने असुध कहें छे पापीयारे । ते निश्चेंइ पूरा मूढ अयांण रे॥ -भिक्षुग्रन्थ रलाकर भाग १, मिथ्याती री निर्णय री ढाल २ पृष्ठ २६२ अर्थात् मिथ्यात्वी ने निरषद्य क्रिया के द्वारा सम्यक्त्व को प्राप्त कर मोक्षपद को प्राप्त किया है। यदि इस निरषद्य करणी को कोई सावध-अशुद्ध कहता है तो वह विवेक-विकल है, मूर्ख है, अज्ञानी है। बब मिथ्यात्वी सम्यक्त्व के सम्मुख होता है तब हीयमान कषाय वाला होता है क्योंकि विशुद्धि से वृद्धि को प्राप्त होने वाले उसके वर्धमान कवाय के साथ रहने का विरोध है। कषाय पाहुडं में कहा है___ "विसुद्धीए वढमाणस्सेदस्स वड्ढमाणकसायत्तण सह विरोहादो। तदो कोहादिकषायाणं विट्ठाणाणुमागोदयजणिदंतपाओग्गं मंदयरकसायपरिणाम मणुभवंतो एसो सम्मत्तमुप्पाघाएदुमाढवेइ त्ति सिद्धो सुत्तस्स बमुदायस्थो।" -कषायपाहुडं गा ९४ : भाग १२१० २०३ टीका-वीरसेनाचार्य अर्थात विशुद्धि से वृद्धि को प्राप्त होने वाले मिथ्यात्वी के वर्षमान कषाय नहीं होती है। इसलिए क्रोधादि कषायों के विस्थानीय अनुभाग के उदय से उत्पन्न हुए तालाबोम्ब मंदतरफवाव परिणाम का अनुभव न करता हुआ सम्बक्त्व को उत्पन्न करने के लिए बारम्भ करता है। अर्थात् पो मिथ्यात्वी संसार से विरक्त होकर अनित्यादि भावना का चिंतन करते रहते हैं वे सम्यक्त्व ग्रहण के Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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