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________________ [ २०१ ] नम में प्रमाणित किया है। जब निर्जरा धर्म की अपेक्षा मिथ्यात्वी के लिये सुव्रती शब्द का व्यवहार हुआ है तब निर्जरा धर्म की अपेक्षा-शुद्ध क्रिया की अपेक्षा मिथ्यावी के लिये अणुव्रती शब्द का व्यवहार करना चाहिये । थोपा सर्फ चाहे कितना भी क्यों न किया जाय; उसका कोई अंत नहीं होता, क्योंकि तर्क समी ररूसो बहुत लम्बी-चौड़ी होती है । अणुव्रती और सुव्रती की और दृष्टिपाप्त कर खुले दिमाग से सोचिये अर्थात् अणुवती और सुव्रती दोनों को तुलनात्मक दृष्टि से देखिये । मिथ्यात्वी के अणुव्रत-शुद्ध क्रिया-निर्जरा धर्म की अपेक्षा बहुत सुन्दर है। ___अणुव्रत नियमों को आप जानते ही होंगे कि वे बुराइयों का प्रतिकार करने के लिये एक प्रकार का सुशस्त्र हैं। उनके नियम भी अच्छे हैं । हर व्यक्ति इन्हें अपना सकता है । इन नियमों को ग्रहण कर, इनका विधिवत् पालन किया जाय तो हर एक व्यक्ति, यहाँ तक कि मिथ्यात्वी भी आत्मा को उज्ज्वल बना सकता है। इस प्रकार उसके आत्मा की उज्ज्वलता क्रमशः होते-होते, उसका शान, जो मिथ्यात्वी के संसर्ग से अज्ञान कहलाता था, वह सम्यक्त्व की प्राप्ति होने से सम्यग्ज्ञान कहलाने लगेगा। बुराइयों को खदेड़ने के लिए 'अणुव्रत' एक अमोघ शस्त्र है । अन्ततः बुराइयों का नाश होने पर (अनंतानुबंधी चतुष्कक्रोध, मान, माया, लोभादि ) ही तो सम्यगदर्शन बादि सद्गुणों को प्राप्ति होती है । सम्यग्दर्शन आत्मा की निर्मल अवस्था है । उपयुक्त न्याय से यदि मिथ्यात्वी पांच अणुनतों के नियमों का यथाविधि पालन करे तो निर्जरा धर्म की अपेक्षा उसके लिये अणवती शब्द का व्यवहार किया जाय तो उसमें आपत्ति का प्रश्न आ ही फैसे सकता है ? अणुव्रती शब्द का अर्थ है-छोटे-छोटे नियमो-व्रतों का पालन करने वाले। उवधाई तथा भगवती सूत्र के आधार पर यह हम कह सकते हैं कि यदि मिथ्यात्वी सद्संगति करे तो बहुत-से कर्मों की निर्जरा कर, सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है। आचारांग सूत्र के छठे अध्याय के दूसरे उद्देशक में कहा गया है कि जो आज्ञा का उल्लंघन करके चलता है, उसे भगवान ने शान-रहित कहा है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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