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________________ [ १७६ ] सीले आचार करें सहीत छ रे, पिण सूतरनें समकतंतिणरें नाहि रे । तिणने आराधक कह्यो देशथी रे, विचार कर जोवो हौया मांहि रे ॥२४॥ देश थकी तो आराधक कह्यो रे, पेंहले गुणठाणे ते किणन्याय रे। विरत नहीं छे तिणरें सर्वथा रे, निर्जरा लेखें कहयो जिणराव रे ॥२॥ . --भिक्षु प्रन्थ रत्नाकर खण्ड १, पृष्ठ २६०, २६१ अर्थात् शोलसम्पन्न, पर श्रुत और सम्यक्त्वरहित मिथ्यात्वी को मोममार्ग का देश आराधक कहा है। यद्यपि सम्यग् ज्ञानरहित होने के कारण मिधात्वी प्रत नहीं होता-परन्तु वह शोलसम्पन्न (पापों से विरत होना ) होता है तो उसके निर्जरा धर्म होता है । इस अपेक्षा से उसे मोक्षमार्ग का देश आराधक कहा है । मिथ्यात्वो वैराग्यपूर्वक सोल का पालन कर सकता है, वैराग्यपूर्वक तपस्या कर सकता है, वैराग्यपूर्वक वनस्पति का त्याग कर सकता है -इस तरह वह क्षयोपशम विशेष से वैराग्यपूर्वक अनेक निरवद्य कार्य कर सकता है।' मिध्यावी के जैसे वैराग्य सम्भव है वैसे ही उसके शुभलेश्या, शुभपरिषरम, प्रशस्त अध्यवसाय बादि हो सकते हैं । कतिपय मिधावी धर्म को सुने बिना निरवद्य क्रिया करते करते सम्मक्त्व तथा चारित्र की प्राप्ति कर, केवलो बन जाते हैं। यदि उनके मिथ्यात्व दशा में निर्जरा नही होतो तो केवलो कैसे बनते । आचार्य भिक्षु ने मिष्याती री करणी रौ चौपई में ढाल नं. २ में कहा है : असोच्चा केवली हआ इण रीत सरे, मिथ्याती थकां तिण करणी कीध रे। कर्म पतला पस्था मिथ्याती थकां रे, तिण सूअनुक्रमें सिवपुर लीध रे ॥४॥ जो मिथ्यात्वी थकों तपसा करतो नहीं रे, मिथ्यात्वी थकों नहीं लेतो आताप रे । क्रोधादि नहीं पाडतो पातला रे, तो किणविध कटता इण रा पाप रे ॥४८॥ १ -भिक्षुग्रन्थ रलाकर खण्ड १, मिथ्याती री करणी चौपई। -ढाल ३, गा २६ । २० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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