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[ १७३ ] कर्मी को निर्जरा उसके भी होती है।' मिथ्यादृष्टि-चरक, परिव्राजक आदि हमारा कर्मक्षय हो ऐसी बुद्धि से तपश्चरणादि अज्ञान कष्ट करते हैं उनके सकाम निर्जरा संभव है। सकाम निर्जरा का हेतु बाह्य-आभ्यंतर-द्विविध तप है।
अब देवताओं ने बाल तपस्वी तामली तापस को चमरेन्द्र बनने के लिए निदान करने की प्रार्थना की, तब बाल तपस्वी तामली तापसने निदान नहीं करने का चिंतन किया। आचार्य भिक्षु ने कहा है
मून साम रह्यों पिण बोल्यों नहीं, नीहांणो पिण न कियों कोय । बले मन में विचार इसड़ो कीयों, करणी बेच्यां आछो नहीं होय । जो तपस्या करणी म्हारे अल्प छ, घणो चिंतव्यों हुवे नहीं कोय। जो तपसा करणी म्हारे अति घणी, थोड़ यो चिंतव्यो सताव सूहोय । जेहवी करणी तेहवा फल लागसी, पिण करणी तो बांझ न होय । तो निहाणों करूंकिण कारणे, आछो कियां निश्चे आछो होय ॥
जिन मत माहे पिण इम कह्यों, नीहाणों करे तप खोय। ते तो नरक तणों हुवें पावणों, बले चिहूँ गति मांह दुखियो होय ॥
-भिक्षग्रन्थ रत्नाकर, भाग १
१-सेन प्रश्नोत्तर, ४ उल्लास
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