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________________ [ १७१ ] निर्जरा का हेतु नहीं होता। वहाँ अकाम निर्जरा होगी। अकाम निर्जरा मो भगवान की आज्ञा के अन्तर्गत को क्रिया है। श्री मज्जयाचार्य ने कहा है "बिना मन भूख तृषा शीत तावड़ादि खमैं, बिना मन ब्रह्मचर्य पाले ते निर्जरा रा परिणाम विना तपसादि करे ते पिण अकाम निर्जरा आज्ञा मांहि छ। xxx/ निर्जरा रो अर्थी थको न करै तिणसू अकाम निर्जरा छै। एह थकी पिण पुन्य बंधे छै पिण आज्ञा बारला कार्य थी पुन्य बंधै न थी। -भगवती नी जोड़, खंधक अधिकार अर्थात् मिथ्यात्वी या सम्यक्त्वो यदि बिना मन भूख तृषा, शीत, ताप सहन करता है तथा ब्रह्मचर्य का पालन करता है, निर्जरा के परिणाम के बिना तपस्यादि करता है तो वह अकामनिर्जरा है। उस अकामनिर्जरा से भी पुण्य का बंध होता है क्योंकि वह भी आशा के अंतर्गत को क्रिया है । भारतीय दर्शन के महान चिंतनकार मुनिश्री नथमलजी ने कहा है - "ऐहिक सुख-सुविधा व कामना के लिए तप सपने वालों को, मिथ्यात्व दशा मैं तप तपने वालों को परलोकका अनाराधक कहा जाता है वह पूर्ण आराधना को दृष्टि से कहा जाता है । वे अंशत: परलोक के अनाराषक होते हैं। जैसे उनका ऐहिक लक्ष्य और मिथ्यात्व विराधना की कोटि में आते हैं वैसे उनको तपस्या विराधना की कोटि में नहीं जाती।" "ऐहिक लक्ष्यसे तपस्या करने की आज्ञा नहीं है इसमें दो बाते हैं-तपल्या का लक्ष्य और तपस्या को करणो। तपस्या करने को सदा आज्ञा है। हिंसा रहित या निरषद्य तपस्या कभी आज्ञा बाह्य धर्म नहीं होता । तपस्या का लक्ष्य जो ऐहिक है उसकी आज्ञा नहीं है-निषेध लक्ष्य का है, तपस्या का नहीं तपस्या का लक्ष्य जब ऐहिक होता है तब वह आशा में नहीं होता-धर्ममय नहीं होता। किंतु 'करणो' आज्ञा बाह्य नहीं होती। इसीलिए आचार्य भिक्षु ने इस कोटि को करणो को जिन आज्ञा में माना है। यदि वह जिन आज्ञा में नहीं होती तो इसे अकामनिर्जरा नहीं कहा जाता।" Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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