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________________ [ १३२ ] अर्थात् अमकसिद्धिक जीव शानी नहीं है, अज्ञानी है। उनके तीन अज्ञान भजना से होते हैं, क्योंकि किसी अभवसिद्धिक को मति-श्रृप्त अज्ञान तथा किसी को मति-श्रुत-विभंग अज्ञान-तीनों होते हैं। अतः मिथ्यात्वी अभवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भो। ५: मिथ्यात्वी और कृष्णपाक्षिक -शुक्लपाक्षिक मिथ्यात्वी कृष्णपाक्षिक भी होते हैं और शुक्लपाक्षिक भी। जिन मिथ्यात्वी का संसार परिभ्रमणकाल देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन या उससे कम अवशेष रह गया है वे शुक्लपाक्षिक होते हैं। इसके विपरीत जिन मिथ्यात्वी जीवों का देशोन अद्ध पुद्गल परावर्तन काल से अधिक काल संसार में परिभ्रमण करना है वे कृष्णपाक्षिक होते हैं। जिस मिथ्यात्वी जीव के एक बार भी यदि मिथ्यात्व छुट जाता है तो वह निश्चय ही शुक्लपक्ष की श्रेणी में समावेश हो जाता है ध्यान में रहे की मिथ्यात्वी का प्रथम गुणस्थान हैं। प्रथम गुणस्थान के जीव शुक्लपक्षी व कृष्णपक्षी-दोनों प्रकार के होते हैं, शेष के गुणस्थानों के जीव शुक्लपक्षी ही होते हैं। सभी शुक्लपाक्षिक जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त के बाद तथा उत्कृष्टतः देशोन अर्द्धपुद्गल परावर्तन के बाद अवश्यमेव कर्मों का क्षय कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। यदि कोई मिथ्यात्वी जीव ऊपर के तेरह गुणस्थानों में से कोई भी एक गुणस्थान धर्मानुष्ठानिक क्रियाओं के द्वारा स्पर्श कर लेता है, फिर वह चाहे उस गुणस्थान को छोड़कर वापस प्रथम गुणस्थान में आ जाता है तो भी वह मिथ्यात्वी फिर किसी दिन सम्यक्त्व प्राप्त कर, चारित्र ग्रहणकर, सर्व कर्मों का क्षयकर मोक्ष पद को प्राप्त करेगा ही। सिद्धान्त में इस प्रकार के मिथ्यात्वी को-जो सम्यक्त्व से पतित होकर फिर मिथ्यात्व अवस्था में आ जाते हैं उन्हें प्रतिपाती सम्यक्त्वी के नाम से संबोधित किया है। वे प्रतिपाती सम्यक्त्वी जीव जघन्य अंतर्मुहूर्त के बाद, उत्कृष्टत: देशोन अद्ध'पुद्गल परावर्तन के बाद मोक्षपद को प्राप्त करेंगे। यह चिंतन में रहे कि वे प्रतिपाती सम्यगदृष्टि जीव ( प्रथमगुणस्थान का जीव ) सक्रिया के द्वारा फिर मिथ्यात्व से नियम से मुक्त होंगे।" (१) प्रज्ञापना पद १८: टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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