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। ११५ ] क्रिया नहीं करता है। अतः एक जीव एक समय में एक क्रिया करता हैसम्यक्त्व क्रिया वा मिथ्यात्व क्रिया ।'
१-प्रयोग क्रिया-पीयन्तिराय कर्म के क्षयोपशम से जाविर्भत वीर्य . द्वारा होनेवाले मन, वचन, काय योग के व्यापार अर्थात प्रवत्तंन होने वाली क्रिया-प्रयोग क्रिया है।
२-समुदान क्रिया--प्रयोग क्रिया के द्वारा एक रूप में ग्रहण की पई कर्मवर्गणा की समुचित रूप से प्रकृप्ति बंधादि भेदों द्वारा देशवाति, सर्वपाती रूप में आदान अर्थात ग्रहण करना समुवान क्रिया है।'
३-अज्ञान क्रिया-मिथ्यादृष्टि का ज्ञान–बज्ञान क्रिया है। शान में जो कर्म अथवा चेष्टा हो-वह अज्ञान क्रिया है । कहा हैअज्ञानात् वा चेष्टा कर्म वा सा अज्ञानक्रियेति ।
-ठाण० स्था ३।३३। सू ४०४ टीका अज्ञान क्रिया के तीन भेद होते है, यथा-मतिअज्ञान क्रिमा, अतबहान सथा विभंगवज्ञान क्रिया । अभयदेवसूरि ने कहा है
मइअन्नाणं मिच्छादिठ्ठिस्स सुयंपि एमेव । मत्यज्ञानात् क्रियाभनुष्ठानं मत्यज्ञानक्रिया एवमितरे अपि । विभंगो-मिथ्यादृष्टेरवधिः स एवाज्ञान विभंगाज्ञानमिति ।
-ठाण० स्था ३।३। सू ४०४ टीका अर्थात् मिथ्यादृष्टि पाली मति द्वारा की गई क्रिया मतियज्ञान क्रिया है । इसी प्रकार मिच्याइष्टि वाली श्रुत द्वारा की गई क्रिया श्रुतमज्ञान क्रिया है। मिण्यारष्टि का अवषिशान विभंग मशान है। इस विभंग अबान से होने वाली क्रिया-विभंग अज्ञान क्रिया है।
इस प्रकार मिथ्यात्व प पक्रिया के तीन भेद होते है। १ क्रिया कोश पृ. १३. २ क्रिया को पृ० ८५
क्रिया कोश पृ. ८१ ४ क्रिया कोश पृ० ।
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