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अर्थात् मिथ्यात्व रूप अक्रिया के तीन भेद होते हैं, यथा- प्रयोगक्रिया, समुदानक्रिया और अज्ञान क्रिया । सम्यक्त्वादि पांच क्रियाओं में भी मिथ्यात्वक्रिया का उल्लेख है ।" प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थान क्रिया में मिथ्यादर्शन शल्य क्रिया का भी विवेचन है । तस्वार्थ भाष्य में आचार्य उमास्वामी ने कहा है
पंचविंशतिः क्रियाः । तत्रेमेक्रियाप्रत्यया यथासंख्यं प्रत्येतव्याः । तद्यथा - सम्यक्त्व- मिध्यात्व-प्रयोग- समादानेयपथाः कायाऽधिकरणप्रदोषपरितापनप्राणातिपाताः, दर्शन- स्पर्शन-प्रत्यय समन्तानुपाताSनाभोगाः, स्वहस्त - निसर्ग- विदारणानयनाऽनवकांक्षा, आरम्भ-परिग्रहमाया मिथ्यादर्शनऽप्रत्याख्यानक्रिया इति ।
- तस्वार्थ भाष्य अ ६ । सू ६ । पृ० ३०१
क्रिया पचीस होती है-यथा १ - सम्यक्त्व, २ – मिध्यात्व, ३ - प्रयोग, ४ - समादान, ५ – ईर्वापथ, ६ - काव, ७ – अधिकरण, ८८ – प्रदोष, ६– परितापन, १० - प्राणातिपात, ११ –दर्शन, १२ - स्पर्शन १३ - प्रत्यय, १४ - समन्तानुपात, १५ –– अनाभोग, १६ – स्वहस्त १७ – निसर्ग, १८ – विदारण, १९ – आनपन, २० - अनवकांक्षा, २१ – आरम्भ, २२ – परिग्रह, २३ – माया, २४ -- मिथ्यादर्वान तथा २५ - अप्रत्यास्मान क्रिया ।
महाँ पचीस क्रिया का उल्लेख है । मिथ्यात्वी के सम्यक्त्व क्रिया और ईर्ष्यापथ क्रिया को बाद देकर शेष सर्व क्रिषायें लगती है । तत्स्वतः क्रिया के जितने साधन है उतने ही क्रिया के भेद हो सकते हैं । सम्यक्त्वी के भी मिथ्यात्व क्रिया को बाद देकर शेष सर्व क्रियायें लग सकती है।
एक जीव जिस समय में सम्यक्त्व क्रिया करता है उस समय मिथ्यात्व क्रिया नहीं करता है, जिस समय मिध्यात्व क्रिया करता है उस समय सम्यक्त्व
१ – क्रियाकोश पृ० २६
२
, पृ० २७
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