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________________ [ १०८ ] अर्थात् एकान्स बाल में मिथ्यादृष्टि और अविरत दोनों का समावेश है। इस प्रकार एकान्त बाल में चतुर्थ गुणस्थान तक के जीवों का समावेश हो जाता है। भगवान ने अज्ञान एवं अदत्त आदि की विरति नहीं होने के कारण अन्यतीर्थियों को 'एकान्त बाल' कहा है। सूबगडांग में मिथ्यादृष्टि व असंयत अविरत अप्रत्याख्यानी को 'एकान्त बाल कहा है ।२ यदि सम्यक्त्वी ने एक भी प्राणी के वध की विरति की है तो उसे एकांत बाल नहीं कह सकते हैं। भगवती सूत्र में कहा है जस्स णं एगपाणाए वि दण्डे अणिक्खित्ते से णं जो 'एत बाले' त्ति वत्तव्वं लिया। -भगवती श १७) उ २, सू २५ अर्थात् जिसने (सम्यग्दृष्टि) एक भी प्राणी के षध की विरति की है वह एकान्त बाल नहीं कहलाता है । वह वस्तुतः बाल पंडित है। जिसने सम्पूर्ण विरति की है-वह पंडित है। आगमों में कहा गया है कि मिथ्यादृष्टि मनुष्य सद् क्रियाओं के द्वारा मनुष्य के आयुष्य का तथा देवगति के आयुष्य का बन्धन करता है, परन्तु सम्यग हष्टि मनुष्य सिर्फ वैमानिक देव के आयुष्य का बंधन करता है किरियावाई पंचिंदियतिरिक्खजोणिया xxx सम्मदिही जहा मणपज्जवनाणी सहेव वेमाणियाउयं पकरेन्ति xxx। जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वया भणिया एवं मणस्साण भाणिकव्वा, णवरं मणपज्जवणाणी नोसन्नोवउत्ता य जहा समट्ठिीतिरिक्खजोणिया तहेव भाणियव्वा । -भगवती श०३०। उ १ सू २६ अर्थात् सम्यग्दृष्टि मनुष्य-नारकी, तिथंच तथा मनुष्य के आयुष्य का बंधन नहीं करता है, वैमानिक देव के आयुष्य का बंधन करता है अतः (१) भगवती ८ उ ७ सू २८८ (२) सूयगडांग श्रु २ अ ४ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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