________________
[ ८४ ] स्थान प्राप्त रहता है। मनुस्मृति, गीता, वेद, त्रिपिटिक आदि सभी धर्म श्रद्धा का गौरव गा रहे हैं। जैन दर्शन में सम्यगदर्शन पर बहुत बल दिया है। समग्र साधना का श्रेय जैन दृष्टि में सम्बगदर्शन को ही है । सभी मिथ्यात्वी के दर्शन मोहनीय कर्म का क्षयोपशम निष्पन्न होता है-हाँ, उस क्षयोपशम में मिथ्यात्वी के परस्पर तारतम्य रहता है, जिससे धर्म के प्रति श्रद्धा होती है। वह श्रद्धा व्यक्त रूप में भी होती है, अव्यक्त रूप में भी होती है। अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है
से किं तं खओवसमे ? खओवसमे चउण्हं घाइकम्माणं खओसमेणं, तंजहा-णाणावरणिज्जस्स १ दंसणावरणिज्जस्स २ मोहणि
जस्स ३ अंतरायस्स४। सेतं खओवसमे। से किं खओवसमनिएफण्णे ? खओवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पन्नत्त । तंजहा-खओवसमियामिणीबोहियणाणलद्धी जाव खओवसमिया मणपवज्जवणाणलद्धी, खओवसमिया मइअण्णाणलद्धी खओवसमिया सुयअप्रणालद्धी, खओवसमिया विभंगणाणलद्धी, खओवसिमिया चक्खुदसणलद्धी, खओवसमिया अचक्खुदंसणलद्धी, खओसमिया
ओहिदसणलद्धी, एवं सम्मई सणलद्धी, मिच्छादसणलद्धी, सम्मामिच्छादसणलद्धी, सामाइयचरित्तलद्धी एवं छेदोवट्ठाणलद्धी, परिहारविशुद्धियलद्धी, सुहुमसंपरायचरित्तलद्धी, एवं चरिताचरित्तलद्धी, खओवसमिया दाणलद्धी एवं लाभलद्धी भोगलद्धी उवभोगलद्धी खओवसमिया वीरियलद्धी एवं पंडितवीरियलद्धी, बालविरियलद्धी बालपंडितवीरियलद्धी, खओवसमिया सोइदियलद्धी जाव फासिदियलद्धीxxx। खओसमिए णवपुन्वी जाव चउदसपुवी।
-अणुओगद्दाराई सूत्र अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय-इन चार घातिक कर्मों का क्षयोयशम होता है-इन चार घाती कर्मो के क्षयोपशम से निष्पन्न भाव को क्षयोपशम निष्पन्न भाव कहा जाता है। वह क्षयोपशम-निष्पन्न भाव अनेक प्रकार का है-यथा, आभिणिबोधिक ज्ञान, (मतिज्ञान), श्रुतज्ञान, अवधि
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org