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________________ तृतीय अध्याय पुद्गल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म स्थूल अवस्थायें - - उवभोज्जमिंदिएहिं य इंदियकाया मणो य कम्माणि । जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पोग्गलं जाणे ॥ (पंचास्तिकाय गाथा ८२) सामान्य परिचय जैन मान्य षड् द्रव्योंमें दूसरा द्रव्य पुद्गल है | इसमें चेतना नहीं होती, इसी कारण इसकी गणना अजीव द्रव्योंमें की जाती है। जैन दर्शनके अनुसार, जितना निश्चित ज्ञाता का अस्तित्व है, इतना ही निश्चित ज्ञेय अर्थात् ज्ञानकी वस्तुका भी अस्तित्व है। इसी कारण जैन दर्शनमें अजीव द्रव्यका भी अपना विशिष्ट स्वरूप है, इसे जीवका व्याघाती कहा गया है।' पुद्गल शब्द जैन दर्शनका एक विशेष पारिभाषिक शब्द है, जो भौतिक वस्तुओंका द्योतक है । यद्यपि सभी दर्शनकार तथा भौतिक विज्ञान भूतद्रव्यके रूपमें इस द्रव्यको स्वीकार करते हैं, परन्तु “पुद्गल" शब्दका प्रयोग केवल जैन दर्शनमें ही किया गया है, अन्य दर्शनों में इसका प्रयोग नहीं पाया जाता । जैन दर्शनमें जिसे पुद्गलवाद कहा है, उसे ही सांख्यने प्रकृतिवाद, न्यायवैशेषिकने आरम्भवाद या परमाणुवाद, वेदान्तने विवर्तवाद और चार्वाक ने भौतिकवाद कहा है। समस्त लोक दृश्य-अदृश्य, सूक्ष्म-बादर पुद्गलोंसे सब ओर से अत्यन्त गाढ़ रूप से भरा हुआ है। ओगाढ़गादणिचिदो पुग्गल दव्वेहिं सव्वदो लोगो। सुहुमेहि बादरेहिं य दिस्सादिस्सेहिं य तहेव ॥२ जैन कर्म सिद्धान्तका अनिवार्य अंगजैन मान्य पुद्गलका जैन कर्म सिद्धान्तसे घनिष्ट संबंध है, क्योंकि जैन १. हिरियन्ना एम०, भारतीय दर्शनकी रूपरेखा, पृ० १५८ २. भगवती आराधना-गाथा १८२२॥ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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